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________________ ब्रह्माण्ड की सीमा पर जो क्वैसर नाम के तारक पिंडों इस समय इनमें से कोई सा भी सिद्धान्त सम्पूर्ण रूप से की खोज हुई है जो सूर्य से भी 10 करोड़ गुना अधिक वस्तु स्थिति का वर्णन नहीं करता।" चमकीले हैं, हम से इतनी तेजी से दूर भागे जा रहे हैं कि इनसे आकस्मिक विस्फोट के सिद्धान्त की पुष्टि इस सम्बन्ध में हम संसार के महान वैज्ञानिक होती है भागने की गति 70.000 से 150.000 मील प्रो० आइन्सटाइन का सिद्धान्त ऊपर वर्णन कर चुके हैं, प्रति सेकिंड)। किन्तु भागने की यह क्रिया एक दिन जिसके अनुसार यह संसार अनादि अनन्त सिद्ध समाप्त हो जायेगी और यह सारा पदार्थ पूनः पीछे होता है। की ओर गिरकर एक स्थान पर एकत्रित हो जायेगा विश्व की उत्पत्ति के सम्बन्ध में लेख का निष्कर्ष और विस्फोट की पुनरावृत्ति होगी। इस सम्पूर्ण क्रिया यह निकलता है कि महान आकस्मिक विस्फोट सिद्धान्त में 80 अरब वर्ष लगेंगे क्षौर इस प्रकार के विस्फोट के अ के अनुसार इस ब्रह्माण्ड का प्रारम्भ एक ऐसे विस्फोट अनन्त काल तक होते रहेंगे । जैनाआर्यों ने इसे परिणमन के रूप में हुआ, जैसा आतिशबाजी के अनार में होता की क्रिया कहा है । इसमें षटगुणी हानि वृद्धि हाती है। अनार का विस्फोट तो केवल एक ही दिशा में रहती है। होता है। यह विस्फोट सब दिशाओं में हआ और जिस प्रकार विस्फोट के पदार्थ पुनः उसी बिन्दु की ओर गिर - दूसरा प्रमुख सिद्धान्त सतत् उत्पत्ति का सिद्धान्त है जिस अपारवतनशील अवस्था का सिद्धान्त भी कहा पड़ते हैं. इस विस्फोट में भी ऐसा ही होगा । सारा ब्रह्माण्ड पुन: अण्डे के रूप में संकुचित हो जायेगा । पुन: जाता है । इसके अनुसार यह ब्रह्माण्ड एक घास के विस्फोट होगा और इस प्रकार की पुनरावृत्ति होती खेत के समान है जहाँ पुराने घास क तिनके मरते रहते रहेगी। इस सिद्धान्त के अनुसार भी ब्रह्माण्ड की हैं और उसके स्थान पर नये तिनके जन्म लेते रहते है। उत्पत्ति शून्य में से नहीं हुई। पदार्थ का रूप चाहे जो परिणाम यह होता है कि घास के खेत की आकृति सदा रहा हो, इसका अस्तित्व अनादि अनन्त है। एक-सी बनी रहती है। यह सिद्धान्त जैन धर्म के 'ह सिद्धान्त से अधिक मेल खाता है । जिसके अनुसार इस दूसरा सिद्धान्त सतत उत्पत्ति का है। इसकी तो जगत का न तो कोई निमाण करनेवाला है और न यह मान्यता है ही कि ब्रह्माण्ड रूपी चमन अनादि काल .. किती काल विशेष में इसका जन्म हुआ। यह अनादि से ऐसा ही चला आ रहा है और चलता रहेगा। इस का। से एसा ही चला आ रहा है और अनन्त काल सिद्धान्त को आइन्सटाइन का आशीर्वाद भी प्राप्त है । तक ऐसा ही चलता रहगा । हमारी मान्यता गीता को अतएव जगत उत्पत्ति के सम्बन्ध में जैनाचार्यों का उस मान्यता के अनुकूल है, जिसमें कहा गया है - सिद्धान्त सोलहों आने पूरा उतरता है। "न कर्तृत्व न कर्माणि, न लोकस्य सृजति प्रभु ।" इस लेख की समाप्ति हम यह कहकर कर रहे हैं एम० आई० टी० (अमरीका) के डा० फिलिप कि 343 घन रज्जु इस लोक में इलेक्ट्रोन, प्रोटीन ओर नोरीसन इस सम्बन्ध म कहते हैं-"ज्योतिषियों ने न्यूट्रोन आदि मूलभूत कणों की संख्या 107 से लेकर जो अब तक परीक्षण किये हैं उनके आधार पर यह 10° तक है, अर्थात् 1 का अंक लिखकर 73 या 75 निर्णय नहीं किया जा सकता कि खगोल उत्पत्ति के बिन्दु लगाने से यह संख्या बनेगी। भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों में से कौनसा सिद्धान्त सही है। अणुरणोयान महतोमहीयान २८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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