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________________ को उन्होंने छुआ उसमें "क्यों" का प्रश्नवाचक समाप्त हो गया है। शैली ऐसी अद्भुत है कि एक अपरिचित विषय भी सहज हृदयंगम हो जाता है । पंडितजी का सबसे बड़ा प्रदेय यह है कि उन्होंने संस्कृत, प्राकृत में निवन्ध आध्यात्मिक तत्वज्ञान को माया गद्य के माध्यम से व्यक्त किया और तत्व विवेचन में एक नई दृष्टि दी । यह नवीनता उनकी क्रान्तिकारी दृष्टि में है । टीकाकार होते हुए भी पंडितजी ने गद्यशैली का निर्माण किया है। डॉ. गौतम ने उन्हें गद्य निर्माता स्वीकार किया है 119 उनकी शैली दृष्टान्तयुक्त प्रश्नो तरमयी तथा सुगम है। वे ऐसी शैली अपनाते हैं जो न तो एकदम शास्त्रीय है और न आध्यात्मिक सिद्धियों और चमत्कारों से बोझिल उनकी इस शैली का सर्वोत्तम निर्वाह मोक्षमार्ग प्रकाशक में है। तत्कालीन स्थिति में गद्य को आध्यात्मिक चिन्तन का माध्यम बनाना बहुत सूझबूझ और श्रम का कार्य था । उनकी शैली में उनके चिंतक का चरित्र और तर्क का स्वभाव स्पष्ट अकता है। एक आध्यात्मिक लेखक होते हुए भी उनकी गद्यशैली में व्यक्तित्व का प्रक्षेप उनकी मौलिक विशेषता है । । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पंडित टोडरमल केवल न टीकाकार थे बल्कि आध्यात्म के मौलिक विचारक भी थे। उनका यह चिन्तन समाज को तत्कालीन परि स्थितियों और बढ़ते हुए आध्यात्मिक शिथिलाचार के सन्दर्भ में एकदम सटीक है। Jain Education International लोकभाषा काव्यशैली में 'रामचरित मानस' लिखकर महाकवि तुलसीदास ने जो काम किया, वही काम उनके दो सौ वर्ष बाद गद्य में जिन आध्यात्म को लेकर पंडित टोडरमलजी ने किया। जगत के सभी भौतिक द्वन्द्वों से दूर रहनेवाले निरन्तर आत्मसाधना व साहित्य-साधनारत इस महामानव को जीवन की मध्यवय में ही माम्प्रदायिक विद्व ेश का शिकार होकर जीवन से हाथ धोना पड़ा । इनके व्यक्तित्व और कतृत्व के सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए लेखक के शोध प्रबन्ध " पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कसूरव" का अध्ययन करना चाहिये । इनकी भाषा का नमूना इस प्रकार है : 16. प्रकाशक पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-4, बापूनगर, जयपुर-41 17. मोक्षमार्ग प्रक. नक, पृष्ठ-313 । "ता बहर कहा कहिए" जैसे रागादि मिटावने का श्रद्धान होय सो ही सम्यग्दर्शन है । बहुरि जैसे रागादि मिटवाने का जानना होय सोही सम्मयज्ञान है। बहुरि जैसे रागादि मिटे सो ही सम्यक्वारित्र है। ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है 118 २७०. * For Private & Personal Use Only 00 www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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