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________________ जैन- आचार्यों का संस्कृत काव्यशास्त्र में योगदान डा० अमरनाथ पाण्डेय संस्कृत साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में जैनों का योगदान रहा है । काव्यशास्त्र के क्षेत्र में भी उनकी सेवा महनीय है । ऐसे अनेक आचार्य हुए हैं, जिन्होंने काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों की सूक्ष्म परीक्षा की है और अनेक उद्भावनायें प्रस्तुत की हैं । यहाँ संक्षेप में इन आचार्यों के योगदान की चर्चा की जा रही है । Jain Education International हेमचन्द्र' ऐसे जैन आचार्य हैं, जिन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है । इन्होंने अपनी सेवा और साधना से विद्वत्परम्परा की सर्जना की। इनका जन्म 1090 ई. में गुजरात प्रान्त के धुन्धुका ग्राम में वैश्य वंश में हुआ था। इनके पिता का नाम चर्चिभ और माता का नाम चाहिणी या पाहणी था । दीक्षित होने के पहले इनका नाम चङ्गदेव था । इन्होंने आठ वर्ष की अवस्था में देवचन्द्रसूरि से जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की। इक्कीस वर्ष की अवस्था में 'सूरि' पद प्राप्त होने पर ये 'हेमचन्द्र ' नाम से प्रसिद्ध हुए । जयसिंह सिद्धराज ( 1093 1143 ई.) और कुमारपाल (1143-1173 ई.) से आचार्य हेमचन्द्र को अत्यधिक सम्मान मिला था । हेमचन्द्र के अनेक योग्य शिष्य थे, जिनमें रामचन्द्र, गुणचन्द्र, वर्धमानगणि, महेन्द्रसूरि देवचन्द्रमुनि, यशश्चन्द्रगणि आदि थे । हेमचन्द्र ने व्याकरण, साहित्य, दर्शन आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । इनका काव्यशास्त्र विषयक ग्रन्थ 'काव्यानुशासन' अत्यधिक प्रसिद्ध है । इस पर लेखक की अपनी टीका है । इस ग्रन्थ के तीन भाग हैंसूत्र (गद्य), वृत्ति और उदाहरण । सूत्रभाग का नाम काव्यानुशासन, वृत्तिभाग का नाम अलङ्कारचूडामणि 1. हेमचन्द्र के जीवन के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान के लिए द्रष्टव्य -- प्रभाचन्द्र विरचित प्रभावकचरित, मेरुतुङ्गसूरि विरचित प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखरसूरि विरचित प्रवन्धकोष, सोमप्रभसूरि विरचित कुमारपालप्रतिबोध, बूलर - कृत 'लाइफ ऑफ हेमचन्द्र' आदि । २०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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