SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मल्लिनाथ चरित्र. सद्भाषितावलि, जम्बू स्वामी चरित्र, जो छन्द संख्या की दृष्टि से रामायण से भी बड़ी है । श्रीपाल चरित्र, तत्वार्थसार दीपक सुकुमाल चरित्र । बहन जिनदास 15वीं शताब्दी के विद्वान थे तथा मीरा व सूरदास के पूर्व ही उन्होंने हिन्दी के प्रचारराजस्थानी कृतियाँ: प्रसार में महत्वपूर्ण योग दिया तथा जन-साधारण की आराधना प्रतिवोधसार, नेमिश्वर गीत, मुक्तावलि भाषा में सबसे अधिक रचनाएँ लिखीं। बहन जिनदास गीत, णमोकारक गीत, सोलहकारण रास, सारसीखा की हिन्दी की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैंमणिरास तथा शान्तिनाथ फागु ।' राम सीतारास, यशोधर रास, नागकुमाररास, आचार्य सोमकीर्ति (संवत् 1516-40) ने भी परमहंसरास, आदि पुराणरास, हरिवंश पुराण, श्रीविक संस्कृत व हिन्दी को अपनी रचनाओं का माध्यम रास, जम्बू स्वामीरास, भद्रबाहु, चाऊदन्त सबन्घरास, बनाया। इनकी सातव्यसन कथा, प्रद्य म्न चरित्र एवं धन्य कुमाररास, भविष्य दन्तरास, जीवन्धर रास. यशोधर चरित्र संस्कृत में निबद्ध रचनाएँ हैं तथा गुर्वा- करकण्डुरास, पुष्पांजलिरास, सुभौम चक्रवर्तीरास, वलि, यशोधर गस, ऋषभनाथ की धूलि, त्रेपनक्रिया- धनपालरास, सुदर्शनरास । गीत, आदिनाथ एवं मल्लगीत इनकी राजस्थानी कृतियाँ हैं । सभी कृतियाँ भाषा एवं शैली की दृष्टि ज्ञानभूषण भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य थे । भट्टासे उत्तम रचनाएं हैं । कवि ने इन रचनाओं में जन- रक बनने से पूर्व ही वे साहित्य निर्माण में लग गये थे साधारण की भावनाओं को अच्छी तरह प्रदर्शित किया और भट्टारक पद छोड़ने के पश्चात भी वे इसी है तथा उसकी दृष्टि में वही नगर एवं ग्राम श्रेष्ठ माने दिशा में लगे रहे। आदीश्वर फाग उनकी सर्वश्रेष्ठ जाने चाहिए जिनमें जीववध नहीं होता । सत्याचरण व परिष्कृत रचना है । इसमें 501 फाग हैं जिनमें किया जाता हो तथा नारी समाज का जहां अत्याधिक 262 हिन्दी के तथा शेष 239 पद्य संस्कृत में निवद्ध सम्मान हो । यही नहीं यहाँ के लोग अपने परिग्रह हैं। आदीश्वर फाग के अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाओं संचय की प्रतिदिन सीमा भी निर्धारित करते हों तथा में पोषह रास, जलगालन रास तथा षटकर्म रास के जहाँ रात्रि को भोजन करना भी वजित हो। नाम उल्लेखनीय हैं। - भ. सकल कीति के शिष्य एवं लघु भ्राता बहन 17वीं शताब्दी में होनेवाले भट्टारकों में भट्टारक जिनदास संस्कृत एवं हिन्दी के प्रकाशमान नक्षत्र हैं। रत्नकीर्ति एवं भटारक कुमुदचन्द्र का नाम विशेषतः उन्होंने हिन्दी की सबसे अधिक सेवा की और उसमें उल्लेखनीय है । ये गुरू व शिष्य दोनों ही बड़े लोक60 से भी अधिक कृतियाँ निबद्ध करके इस दिशा में एक प्रिय सन्त थे तथा जन-जन में भगवद् भक्ति को उभानया कीर्तिमान स्थापित किया। उनकी रामसीतारास रने के लिये छोटे-छोटे भक्तिपरक पदों की रचना (संवत 1520) राजस्थानी की प्रथम रामायण है किया करते थे। नेमि राजुल को लेकर भी दोनों ही 4. मो पूज्यो नृप मल्लि भैरव महादेवेन्द्र मुख्य नृपै । षट्तकीगम शास्त्र कोविद मति जाग्रंत मशश्चन्द्रमा । भव्याम्भोसह भास्करः शुभ करः संसार विच्छेदकः। सोऽव्याछी विजयादि कीति मनियो भदारकाधीक्षवरः । २३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy