SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महामण्डप, अन्तराल तथा गर्भगृह-इन तीन मुख्य मंदिर पास-पास बने हुए हैं। मध्यप्रदेश में पपौरा, भागों में विभक्त है। उनके चारों ओर प्रदक्षिणा मार्ग अहार, थूबोन, कुण्डलपुर, सोनागिरि आदि अनेक स्थलों है । इस मंदिर की छत का कटाव विशेष कलात्मक है पर जैन मंदिर-नगर निर्मित हुए। ऐसे मंदिर-नगरों के और खजुराहो के स्थापत्य विशेषज्ञों की दक्षता का लिए पर्वत शृखलाएं धिशेष रूप से चुनी गयीं। परिचायक है। मंदिर के प्रवेश-द्वार पर गरुड़ पर भारत के अनेक राजवंशों ने जैन-कला की उन्नति दसभुजी जैन देवी आरूढ़ है । गर्भगृह की द्वारशाखा में योग दिया। गुप्त शासकों के बाद चालुक्य, राष्ट्रकूट, पर पद्मासन तथा खड्गासन में तीर्थंकरों की प्रतिमाएं कलचुरि, गंग, कदम्ब चोल तथा पांड्य वंश के अनेक उकेरी गई हैं। खजुराहो के इन मंदिरों में विविध राजाओं ने जैन-कला को संरक्षण तथा प्रोत्साहन दिया। आकर्षक मुद्राओं में सुरसुदरियों या अप्सराओं की भी इन वंशों के कई राजा जैन धर्मानुयायी थे। इनमें सिद्धमूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इन मूर्तियों में देवांगनाओं के अंगप्रत्यंगों के चारुविन्यास तया उनकी भावभंगिमाएँ राज जयसिंह, कुमारपाल, अमोध वर्ष, अकालवर्ष तथा विशेष रूप से दर्शनीय हैं । खजुराहो का दूसरा मुख्य गंगवंशी भारसिंह द्वितीय के नाम उल्लेखनीय हैं। इन शासकों को जैन धर्म की ओर प्रवर्त करने का श्रेय जैन संदिर आदिनाथ का है। इसका स्थापत्य पार्श्वनाथ मंदिर के समान है। स्वनामधन्य हेमचन्द्र, जिनसेन, गुणभद्र, कुन्दकुन्द आदि जैन आचार्यों को है। राज्य-संरक्षण प्राप्त होने एवं विदिशा जिले के ग्यारसपूर नामक स्थान में माला- विद्वान आचार्यों द्वारा धार्मिक प्रचार में क्रियात्मक देवी का मंदिर है। उसके बहिर्भाग की सज्जा तथा योग देने पर जैन साहित्य तथा कला की बड़ी उन्नति गर्भगृह की विशाल प्रतिमाएं कलात्मक अभिरुचि की हुई । मध्यकाल में अठारहवीं शती के अन्त तक प्रायः द्योतक है। मध्य भारत में मध्यकाल में ग्वालियर, समस्त भारत में जैन मंदिरों एवं प्रतिमाओं का निर्माण देवगढ़, चन्देरी, अजयगढ़, अहार आदि स्थानों में जारी रहा । सामाजिक-धार्मिक इतिहास की जानकारी स्थापत्य तथा मूर्तिकला का प्रचुर विकास हुआ। के लिए यह सामग्री महत्त्व की है। जैन स्थापत्य तथा मूर्तिकला का प्राचुर्य 'देवालयनगरों में देखने को मिलता है। ऐसे स्थलों पर सैकड़ों १७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy