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________________ एलौरा को जैन गुफाएं में लगभग 6वीं शताब्दी से एक अखंडित कला साधना का स्त्रोत दिखाई देता है । जहाँ हिन्दु गुफाएँ समाप्त चालुक्य और राष्ट्रकूट आधिपत्य में भी महान होती हैं वहाँ से ही जैन गफा होती हैं वहाँ से ही जैन गुफाओं का आरम्भ होता हैजैन-शैल-गृह कर्नाटक में बनाये गये हैं । सातवीं शताब्दी छोटा कैलास, जगन्नाथ सभा और इन्द्र सभा जैनों की प्रमुख में बदामी और ऐहोली में चालूक्यकालीन जैन गुफाएँ गुफाएँ हैं । इन जैन गुफाओं का काल 9 और 10वीं और राष्ट्रकूटकालीन एलौरा की गुफाएँ अपनी शताब्दी का माना जाता है और ये गुफाएँ जैनमत प्रेमी विशेषता रखती हैं। बदामी और ऐहोली गुफाओं में राष्ट्रकूट नृपति गोविन्द और अमोधवर्ष के शासनकाल पार्श्वनाथ और बाहुबली के शिल्पपट उत्कीर्ण हैं। में खोदी गई। इनमें पार्श्वनाथ और बाहुबली की मूर्ति एलोरा की गुफाओं में स्थापत्य, शिल्प और चित्रकारी का शिल्पपट बहुत ही प्रेक्षणीय है । पार्श्वनाथ पर का मनोहर त्रिवेणी संगम दृष्टिगोचर होता है। एलोरा कमठ का किया गया आक्रमण और धरणेन्द्र यक्ष द्वारा किया गया संरक्षण बहुत ही आकर्षक है। इस शिल्पपट्ट को देखकर बुद्ध पर मार द्वारा किये आक्रमण की याद आ जाती है जिसको अजंता की चित्रकला और शिल्पकला पटों पर सून्दर ढंग से दिखाया गया है। यहाँ की यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियाँ भी प्रेक्षणीय हैं। एलोरा की जैन गुफाओं के भित्ति चित्रों का भारतीय कला में प्रमुख स्थान माना जाता है। जैन गुफाओं की छतों और भित्तियों पर जो शेष चित्रपटल हैं, वे अजता और मध्ययुगी ताडपत्रीय और हस्तलिखित चित्रकला की श्रृखला की एक कड़ी मानी गई हैं। इन्ही भित्ति चित्रों में भारतीय चित्रकला का अखंड विकास समझ में आता है। पश्चिम भारतीय जैन हस्तलिखित ग्रन्थ जिसमें कई चित्र अंकित हैं, गुजरात के पाटन वोर खंभात में और राजस्थान के जैसलमेर के ज्ञान भण्डार में उपलब्ध हैं। इन ग्रन्थ के संरक्षण के लिए, जो लकड़ी के पटल ऊपर और नीचे रखे जाते थे, वे भी सुन्दर चित्रों से अलंकृत हैं। यह चित्र सम्पदा 12 वीं और 16 वीं शताब्दी के बीच की है। इन चित्र पटलों पर चित्र प्रदर्शनों में नाट्यपूर्ण गतिमानता के साथ-साथ चित्र अंकित किये गये हैं। सुपार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा (बादामी की गुफा) गुफा क्र. 4 (7वीं शताब्दी) कर्नाटक में जैन कला वास्तु कर्नाटक में जैन धर्म का प्रचार अति प्राचीन है। मौर्यकाल में उत्तरी भारत में जब भीषण अकाल पड़ा १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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