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________________ अनुरूप समान वितरण, आचार-विचार में समन्वय और उसने उनके मानवदर्शन का और व्यापक प्रचार कर, स्वेच्छिक अनुशासन पर बल दिया तथा श्रम भाव की विशेषकर अहिंसा दर्शन के उच्चतम शिखरों की प्रतिष्ठा की। स्वयं उनके जीवन में इन्द्र द्वारा अपनी स्थापना के माध्यम से मानव जाति की महान् सेवा की सेवाएं प्रस्तुत करने पर उन्होंने उसे अस्वीकार कर कहा है। उनकी परम्परा ने जहाँ, तीर्थ कर महावीर के कि मैं अपने श्रम, बल एवं पुरुषार्थ से ही सिद्धि प्राप्त उपदेशों का व्यापक प्रचार किया, वहाँ शैक्षणिक एवं करूंगा, किसी अन्य का सहयोग प्राप्त करके नहीं। साहित्यिक दृष्टि से उनके सिद्धान्तों की व्याख्या कर उन्होंने कहा कि श्रम कभी निष्फल नहीं जाता। यही तथा उन्हें लोकभाषाओं में लिपिबद्ध कर जैन वाङ्गमय कारण है कि तीर्थकर महावीर श्रमण कहलाए और को इतना अधिक सम्पन्न बना दिया कि ज्ञान की कोई उनकी परम्परा को श्रमण संस्कृति का नाम निरूपित भी विधा, इनसे अछूती न रही । प्रायः सभी प्रचलित किया गया । एवं लुप्त भारतीय भाषाओं में आज जो भी प्राचीन साहित्य उपलब्ध है उसका एक बड़ा भाग जैन वाङगमय भारतीय दर्शन पर तो तीर्थ कर महावीर द्वारा न स्थापित मानदण्डों का तीव्र प्रभाव पड़ा, और उसमें अहिंसक प्रवृत्तियाँ तीव्रता से प्रतिष्ठित हई । बीसवीं मानव सभ्यता के उदयकाल से ही मानवतावादी सदी में महात्मा गाँधी के रूप में जिन भारतीय विचारक चिन्तन में संलग्न गौरवमयी भारतीय सभ्यता ने जहाँ ने अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम की सफलता से, अणु अनेकों उच्च आदर्शों एवं मानदण्डों की स्थापना एवं आयुधों की कगार पर बैठी मानव सभ्यता को नया उत्कृष्ट कला तथा साहित्य की रचना की वहाँ दुर्भाग्यमानवता वादी जीवन सन्देश दे सम्पूर्ण विश्व को चौंका वश इस दश म इतिहास वश इस देश में इतिहास लिखने और प्राचीन स्मारकों, दिया, उनके मूल प्रेरणा स्रोतों में गाँधीजी के स्वयं के कलात्मक प्रतीकों एवं ग्रन्थों तथा पाण्डुलिपियों की अनुसार तीर्थंकर महावीर का मानवतावादी दर्शन सुरक्षा सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया। इस देश की प्राचीन सभ्यता की प्रतीक बहुत-सी पुरातत्विक सम्पदा प्रमुख था। और प्राचीन साहित्य, सुरक्षा के अभाव में नष्ट हो गयी, सर्वाङ्गीण प्रतिभा के धनी वर्द्धमान महावीर ने बहुत कुछ विदेशी शासकों द्वारा नष्ट कर दी गयी, कठोर साधना के द्वारा जहाँ त्याग और तपस्या के अन्त तथा कुछ उनके साथ विदेश चली गई। में उच्चतम मानदण्डों की स्थापना की वहाँ उनके प्रसन्नता की बात है कि स्वाधीनता प्राप्ति के मानवतावादी दर्शन ने मानव चिन्तन को एक नई दिशा उपरान्त इस दिशा में कुछ प्रयास प्रारम्भ हुए हैं । दी। अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिये ।। पुरातत्विक सम्पदा की सुरक्षा और पुरातत्व तथा उन्होंने तत्कालीन समाज में, सुदुर क्षेत्रों की पदयात्रा साहित्यिक क्षेत्र में शोध-कार्य की दिशा में भी प्रयास कर लोकभाषा में अपने मानव धर्म का प्रचार किया प्रारम्भ हुए हैं, तथापि, इस देश की महान सभ्यता, विपुल और कठोर साधना के पश्चात् ज्ञान का जो विपुल पुरातत्विक सम्पदा तथा विशाल वाङ्गमय को दृष्टिगत भण्डार अजित किया था. उसे जन-सामान्य में बिखेर रखने का यह प्रयास अक्षण्य दी है. इसमें तीवता लाने दिया । हजारों-लाखों नर-नारी उनके मतानुसार दीक्षित प्राचीन ग्रन्थों के पुनर्मद्रण तथा उन पर शोध-कार्य को हो गए। सम्पादित करने की नितान्त आवश्यकता है। आज से पच्चीस सौ वर्षों पूर्व निर्वाण को प्राप्त जीवाजी विश्वविद्यालय ने अपने सीमित साधनों होने के पश्चात तीर्थ कर महावीर ने जो परम्परा छोड़ी के अनुरूप इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। xiii Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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