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________________ १४० एकं द्वौ वाऽनाहारकः ॥ ३१ ॥ सम्मूर्छ नगर्भोपपाता जन्म ॥ ३२॥ सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तधोनयः ॥३३॥ जराय्वैग्डपोतजानां गर्भः ॥ ३४ ॥ नारकदेवानामुपपातः ॥ ३५॥ . शेषाणां सम्मूर्छनम् ॥ ३६॥ औदारिकवैक्रियाऽऽहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥३७॥ परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३८ ॥ प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ॥ ३९ ॥ १ द्वौ त्रीन्या –स रा० श्लो० । सूत्रगत 'वा' शब्द से कोई 'तीन' का भी संग्रह करते थे ऐसा हरिभद्र और सिद्धसेन का कहना है । २ -पाताजन्म -स०।-पादा जन्म -रा० श्लो० । ३ जरायुजाण्डपोतजानांग:-हाजरायुजाण्डपोतानां गर्भः -स. रा० श्लो० । रा० और श्लो. 'पोतज' पाठ के ऊपर आपत्ति करते हैं । सिद्धसेन को यह आपत्ति ठीक मालम नहीं होती। ४ देवनारकाणामुपपादः -स० रा. लो० । ५ -वैक्रियिका -स. रा. लो० । ६ सिद्धसेन का कहना है कि कोई 'शरीराणि' इस पदको अलग सूत्र समझते हैं। ७ तेषां -मा० में यह पद सूत्रांश रूप से है लेकिन भाष्यटीकाकारों के मतमें यह भाष्यवाक्य है ।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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