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________________ ყე योगशास्त्र. मलप्रत्ये दोडता हंसोज होय नहीं, तथा गंगाना मोजासरखां वे चामरो प्रभुपासे शोजवा लाग्यां. वली जेनी पासे सूर्यमंडल पण एक पतंग - या सरखुं लागे ठे, एवं जामंडल प्रभुना शरीरपाल प्रगट थयुं. वली ( पोताना ) पडघाथी चारे दिशाउने अत्यंत वाचाल करतो, तथा मेघसरखो गंजीर, निनाद श्राकाशमां थवा लाग्यो नीचे बे डीटीयां जेनां, एवां पुष्पो देवोए चारे वाजु वरसाव्यां, ते जाणे के, शांत एला माणसत्ये कामदेवें पोतानां हथियारो बोडी दीघां होय नहीं, तेवां शोजतां तां पठी प्रभु पांत्रीश अतिशयोवाली, वाणीथी त्रण लोकना अनुग्रह वास्ते धर्मदेशना देवा लाग्या. हवे प्रभुना केवलज्ञानना उत्सवने खवरपत्रियोयें, जरतने जणाव्यो, तथा तेज वखतें, तेने चक्र पण उत्पन्न थयुं. त्यारे जरत दणवार सुधि विचारमां पड्यो के, या वाजु पिताजीने केवलज्ञान ययुं बे, मने या वाजु चक्ररत्न उत्पन्न ययुं बे, माटे पेहेली कोनी पूजा करूं? (एम विचारतां मनमां एम श्राव्यं के) अजयदानने देनारा पिताजी क्यों ? प्राणियोनी घात करनारूं या चक्र क्यां? एम विचारि तेणे पोताना संबंधिने प्रजुनी पूजामाटे हुकुम कर्यो पुत्रना परिषदना समाचारथी दुःखनां अश्रु करी जेनी श्रांखो रोगसहित एली बे, एवां मरूदेवा मातानी पासे जइ जरतें विनति करी के, हे माताजी, तमो एम कहेतां हतां के, पद्मखंड सरखो कोमल, मारो पुत्र, वर्षा ऋतुमां पाणिनो उपद्रव सहन करे बे, वली शियालामां मालतीना गुच्छानी पेठे हमेशां ठंडीना संतापथी क्लेश पामे बे, तथा उनालामां हाथीनी पेठे, प्रति जयंकर सूर्यनां किरणोथी संतापने जोगवे बे; छाने एवी रीतें सर्व वखतें, वनमां रही, श्रयरहित, एकलवाया माणसनी पेठे एकाकी रहेतो थको मारो पुत्र दुःखी होशे. ते तमारा पुत्रनी हमषां त्रण लोकना स्वामिपणाने धारण करती संपदा तमो जुर्ज ? एम कही तेणीने जरतें हाथी पर बेसाड्यां पढी ते जरतराजा मूर्त्तिमान् लक्ष्मीसरखा, सोना, हिरा, तथा माकिना भूषणावाला, घोडा, हाथी तथा पायदल सहित त्यांथी चालवा लाग्यो. भूषणोनी कांतिना समूहथी करेलां वे जंगम तीर्थों जेए, एवां सैन्यो सहित, तो ते राजा दूरथीज रत्नध्वजने जोतो वो पढी ते जरत
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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