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________________ ४३७ योगशास्त्र. अर्थः- चंजनी कलाना श्राकार सरखं, सूक्ष्म, तथा सूर्यसरखं तेजखी, अने स्फुरायमान थतुं एवं अनाहत नामना देवतुं चिंतवन करवू. पठी, तदेव च क्रमात्सूक्ष्म, ध्यायेद्वालाग्रसंनिनं ॥ दणमव्यक्तमीदेत, जगज्ज्योतिर्मयं ततः॥२॥ अर्थः- पड़ी अनुक्रमें तेनेज वालना श्रय नागसरखं सूक्ष्म ध्यावg, पली क्षणवार सुधि जगत् ज्योतिर्मय श्रव्यक्त जोवु श्रने एवी रीते, प्रच्याव्य मानसं लदया, दलदये दधतः स्थिरं॥ ज्योतिरदयमत्यद, मंतरुन्मीलति क्रमात्॥२॥ अर्थः- लयमांधी अलक्ष्यमां धारण करातुं, एटले अत्यंत सूक्ष्म थतुं, एबुं अक्षय ज्योति अनुक्रमें अंतरमा प्रगट थाय . . इति लयं समालंब्य, उदयनावः प्रकाशितः॥ निषममनसस्तत्र, सिध्यत्यनिमतं मुनेः॥शए॥ अर्थः- एवी रीतें लथना आलंबनश्री लक्ष्यनो जाव कह्यो; तेमां निश्चल मनवाला योगीनुं शठित सिद्ध थाय . तथा, तथा हृत्पद्ममध्यस्थं, शब्दब्रह्मैककारणं॥ स्वरव्यंजनसंवीतं, वाचकं परमेष्टिनः॥३०॥ मूईसंस्थितशीतांशु, कलामृतरसप्लुतं ॥ कुंनकेन महामंत्रं, प्रणवं परिचिंतयेत् ॥ ३१ ॥ अर्थः- हृदयकमलना मध्यभागमा रहेढुं, तथा एक ब्रह्मशब्दना कारणरूप, श्रने खर तथा व्यंजनथी वीटायेलो, अने परमेष्टिनो वाचक, तथा मस्तकपर रहेल चंजनी कलाना अमृतरसथी जीजायेलो, एवा महामंत्र प्रणवरूप ॐकारने कुंजक नामना प्राणायामवडे चिंतववो, हवे तेना ध्येयपणामां प्रकारांतरो कहे . पीतं स्तंनेऽरुणं वश्ये, दोनणे विमप्रनं॥ कृष्णं विशेषणे ध्यायेत्, कर्मघाते शशिप्रनं ॥३॥ अर्थः- स्तंजनमां पीलुं, वशीकरणमा लाल, दोजनमा परवाला सरखं, विशेषमां कालु तथा कर्मघातमां चंजसरखं ध्यावQ.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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