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________________ ४२६ योगशास्त्र. एवी रीतें तेमां वारंवार अभ्यास करवा बाद, प्रमादरहित थइने मालतीनां मुकुल आदिकमां, हमेशां स्थिरलक्षणपणाये करीने वेध करवो; एवी रीतें तेमां दृढ अभ्यास कर्याबाद वरुणवायुयें करीने, कपूर, अगुरु श्रादक गंध अव्योमा वेध करवो तेमां प्रवीण थया बाद, तथा वायुने संयोजवामां हुशीयार थश्ने सूक्ष्म एवा पदि आदिकना शरीरोमां उद्यमवंत थश्ने वेध करवो; एवी रीतें पतंगिया जमरा आदिकमां अन्या- : स कर्या बाद हरिणमां पण करवो; अने ते वखते तेमांज तहीन थक्ने, तथा इंजियोने जितीने तेमां संचरवु, पनी अनुक्रमें मनुष्य, घोडा हाथी आदिकनां शरीरोमां आवागमन करवू, तथा पनी पत्थर श्रादिकमां पण अनुक्रमें जवा श्राववानो अभ्यास करवो. एवं परासुदेदेषु, प्रविशेषामनाशया ॥ जीवद्देदप्रवेशस्तु, नोच्यते पापशंकया॥२६॥ अर्थः- एवी रीतें मृत्यु पामेला प्राणिनां शरीरमां डाबी नाशिकाथी प्रवेश करवो, पण पापनी शंकाथी जीवतां प्राणीना शरीरमा प्रवेश करवो कह्यो नथी. एवीरीतें परनां शरीरमा प्रवेश करीने पण बुद्धिमान् योगियें अरधो दिवस अथवा एक आखो दिवसज क्रीडा करवी, अने पनी पाबु पोताना शरीरमां दाखल थq. ' ' क्रमेणैवं परपुर, प्रवेशाच्यासशक्तितः॥ विमुक्त श्व निर्लेपः, स्वेच्या संचरेत् सुधीः ॥२६॥ हवे ते परपुरप्रवेश- फल कहे बे. अर्थः- उत्तम बुद्धिमान् माणस एवी रीतना क्रमथी परशरीरमा प्रवेश करवाना अच्यासनी शक्तिथी विमुक्तनी पेठे निर्लेप थश्ने पोतानी श्वा प्रमाणे संचरी शके. . एवी रीतें परमाईत श्रीकुमारपाल राजाथी सेवायेला आचार्य महाराज श्री हेमचंजीयें रचेला अध्यात्मोपनिषद् नामना, थयेल डे पट्टवंध जेनो एवा था योगशास्त्रमा पोतेज करेलुं पांचमा प्रकाशनुं विवरण संपूर्ण थयु. ॥श्रीरस्तु.॥
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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