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________________ राता॥ पंचमप्रकाश बाजुन अंग वायुथी नरेनु होय; ते तरफनो पग अगाडी करीने जवाथी 'इडित कार्यसिद्धि थाय. तथा, गुरुबंधुनपामात्या, अन्येपीप्सितदायिनः॥ पूर्णांगे खलु कर्तव्याः, कार्यसिक्ष्मिनीप्सता ॥श्श॥ अर्थः- वायुथी संपूर्ण अंग होते बते, गुरु, बंधु, राजा, श्रमात्य श्रने बीजा पण शछित देनारा होय , माटे वायुथी पूर्ण अंग होते बते कासिजि प्रत्ये श्छा करवी. तथा, .. आसने शयने वापि, पूर्णागे विनिवेशिताः॥ वशीनवंति कामिन्यो, न कार्मपमतः परं॥ २३०॥ अर्थः- वायुथी पूर्ण अंग होते बते, श्रासन अथवा शय्यापर बेसाडेली स्त्रियो वश थाय , एम करवामां था शिवाय बीजु को पण कामण वधारे बलवत् नथी. तथा, अरिचौराधमांद्या, अन्येऽप्युत्पातविग्रदाः॥ कर्तव्याः खलु रिक्तांगे,जयलानसुखार्थिनिः॥२३॥ अर्थः- जय लान अने सुखना अर्थि माणसोये, वायुथी खाली शरीर होते बते, शत्रु, चोर, वेणदार विगेरे बीजा उत्पात अने विग्रहोनो उपाय करवो. तथा, प्रतिपदाप्रदारेन्यः, पूर्णगे योऽनिरदति ॥ न तस्य रिपुनिः शक्ति, बलिष्टैरपि हन्यते॥२३॥ अर्थः- वायुधी पूर्ण अंग होते बते, जे माणस शक्तिनाप्रहारोधी पोतानुं रक्षण करे बे, तेनी शक्तिने बलवान् शत्रु पण हगवी शकतो नथी. वदंती नासिकां वामां, दक्षिणां नानिसंस्थितः॥ एजेद्यदि तदा पुत्रो, रिक्तायां तु सुता नवेत् ॥ २३३ ॥ थर्थः- डावी अथवा जमणी नाडी वहेते उते उनो रहीने जो पूजे, तो पुत्र थाय , अने ते नाडी खाली होय ने पूछे, तो पुत्री थाय ने; तथा, सुषुम्णावादनागे हौ, शिश रिक्ते नपुंसकं ॥ संक्रांतौ गर्नहानिः स्यात्, समे हममसंशयं ॥३४॥
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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