SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२७ योगशास्त्र. बते चार पोदोरे, मस्तकनो अनाव होते ते वे पोहोरे, अने सर्वनो श्रनाव होते बते तत्तण मृत्यु थाय . एवमाध्यात्मिकं कालं, विनिश्चेतुं प्रसंगतः॥ बाह्यस्यापिदि कालस्य, निर्णयः परिभाषितः॥१२॥ · अर्थः- एवी रीतें आध्यात्मिक कालनो निश्चय करावामाटे प्रसंगोपाच बाह्यकालनो पण निर्णय कह्यो. हवे जय अने पराजयना परिज्ञाननो उपाय कहेले. को जेष्यति ध्योर्युके, इति एबत्यवस्थितः॥ 'जयः पूर्वस्य पूर्वे स्या, विक्ते स्यादितरस्य तु॥२१३॥ . अर्थः-बन्नेनां युद्धमां कोण जीतशे ? एम पूजीने रो उते, पूर्ण होते थके पूर्व पदनो जय थाय, अने अधुरे रहेते थके सामा पदवालानो जय थाय, हवे ते पूर्ण श्रने अधुरानुं स्वरूप कहे बे. यस्त्यजेत् संचरन् वायु, स्तक्तिमभिधीयते॥ संक्रामेत्तु यत्र स्थाने, तत्पूर्ण कथितं बुधैः॥१४॥ अर्थः- संचरतो वायु जे तजी दे, ते अधुरुं कहेवाय, अने जे स्थानमा संक्रमण पामे, ते पंडितोयें संपूर्ण कहेवाय . तथा, प्रष्टादौ नाम चेद् झातु, गुंह्रात्यत्यातुरस्य तु॥ स्यादिष्टस्य तदा सिडि, विपर्यासे विपर्ययः॥१५॥ अर्थः- पुडनार माणस पेहेला जाणनारनुं (वैद्यनु) अने पनी जो रोगोनुं नाम ले, तो कार्यनी सिकि थाय, अने तेथी उलटी रीतें नाम लेवाथी विपर्यास थाय. वामबाढस्थिते दूते, समनामादरो जयेत् ॥ दक्षिणबाहुगे त्वाजौ, विषमादरनामकः॥ १६॥ अर्थः- जो दूत डाबा हाथ पासे आवी उन्ने, तो सम अक्षरनां नाम'वालो जीते, अने जो जमणा हाथपासे उन्ने, तो लडाश्मां विषम अक्षरना नामवालो जीते. तथा,
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy