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________________ ០១ योगशास्त्र. श्याम रंगवाली, मुखने नालीयेर सरखं जो जुवे, तथा तालुनो कंप, मननो शोक, शरीरपर अनेक प्रकारनो रंग, तथा नाजिथी अकस्मात हींक थाय तो बे मासे मृत्यु थाय. तथा, जिदा नास्वादमादत्ते, मुदः स्खलति भाषणे॥ श्रोत्रे न शृणुतःशब्द, गंधं वेत्ति न नासिका ॥ २५॥ स्पंदेते नयने नित्यं, दृष्टवस्तुन्यपि भ्रमः॥ नक्तमिंधनुः पश्येत्, तथोल्कापतनं दिवा ॥ २५॥ न गयामात्मनः पश्येत्, दर्पणे सलिलेऽपि वा। अनब्दां विद्युतं पश्येत्, शिरोकस्मादपिज्वलेत्॥१५३॥ हंसकाकमयूराणां, पश्येच्च क्वापि संहति ॥ शीतोष्णखरमहादे, रपि स्पर्श न वेत्ति च ॥१५४॥ अमीषां लक्ष्मणां मध्या, द्यदैकमपि दृश्यते॥ जंतोर्नवति मासेन, तदा मृत्युनसंशयः॥१५५॥ ॥पंचनिः कुलकं ॥ अर्थः- जीन खाद न ले, तथा बोलती वखते वारंवार स्खलायमान थाय, बन्ने कर्णो शब्द सांजले नहि, नाशिका गंधने उलखी न शके, हमेशां बन्ने आंखो फरक्या करे, दीली वस्तुमां पण बम पडे, रात्रिए इंधन जुए, तथा दिवसें उल्कापात जुए, पोतानी बाया आरिसा श्रथवा पाणीमां न जोर शके, मेघ (वादलां) विना विजलीने जुए, अकस्मात् मस्तक ज्वलायमान थाय, तथा हंस, कागडा, अने मयूरना ना, शने जुए, वंडं, उष्ण, खरबच९, कोमल विगेरेनो स्पर्श मालुम न पडे; उपरनां सघलां चिह्नोमांथी एक पण चिह्न जो प्राणीने थाय, तो तेर्नु एक मासमां मृत्यु थाय, तेमां बिलकुल संशय नथी. तथा, शीते हकारे प्युत्कारे, चोष्णे स्मृतिगतिक्ष्ये ॥ अंगपंचकशैत्ये च स्यादृशादेन पंचता ॥१५६॥ अर्थः- हकार शब्दनो उच्चार करवाथी जो मुखमाथी ठंमो वायु निकले, तथा फुत्कार करवाथी उष्ण निकले. तथा, स्मरणशक्ति श्रने गति
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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