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________________ प्रथमप्रकाश. एए जेम, तेम पगे चालीने जवाने जे कुशल , ते "ज्योतीरश्मिचारणों" कहेवाय, वली अनेक दिशाउँमा उलटी तथा सुलटी रीतें वाता पवनोमां तेना प्रदेशनी श्रेणितुं श्रालंबन लश्ने, अटकाव रहित गति करनाराज, "वायुचारणो" कहेवाय. वली तपना माहात्म्यथी, अथवा बीजा गुणोथी, " श्राशीविषलब्धि, उवाला" निग्रह तथा अनुग्रहमां पण समर्थ थाय . जे ज्ञाननो विषय, मूर्तिमंत अव्यो होय , ते “अवधिज्ञान" कहेवाय . वली मनुष्य क्षेत्रमा रहेनारा मनवाला प्राणिऊना, मनप्रव्यने प्रकाशनारुं ज्ञान, "मनःपर्याय" ज्ञान कहेवाय. मनःपर्यायज्ञानना बे दो बे, शत्रु,अने विपुल. वली विपुल पण, विशुद्धि अने अप्रतिपाति नेदोवा बे. हवे केवल ज्ञानरूपी फलना देखाडवावडे करीने, योगनीज स्तुति करे . अदो योगस्य मादात्म्यं, प्राज्यं साम्राज्यमुघदन् । __ अवाप केवलज्ञानं भरतोनरताधिपः॥१०॥ श्रर्थः-अहो! योगर्नुमाहात्म्य केवु ? (के जेथी) उत्कृष्ट चक्रवर्तिपणानां राज्यने धारण करनार,जरतना राजा नरतमहाराज केवल ज्ञान पाम्या. टीका:-श्रा अवसर्पिणिमा, एकांत सुषमा श्राराना चार कोडाकोडी, सागरोपम गयावाद, तथा त्रण कोडाकोडी सागरोपमनो सुषमा नामें बीजो आरो गये बते, तथा पली बे कोडाकोडी सागरोपमना परिमाणवाला सुषमषम नामना आरानो पल्यनो आग्मो, अंश बाकी रह्यो त्यारे, दक्षिणार्ध जरतमां नीचे प्रमाणे सात कुलकरो थया तेजेनां नाम. विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अनिचंड, प्रसेनजित, मरुदेव, तथा नानि नामें थया. तेमांथी नानि कुलकरने उत्तम शीलश्री त्रण जगतने पवित्र करनारी मरुदेवी नामें स्त्री हती. हवे त्रीजा आराना चोराशी लाख पूर्व त्रण वर्ष अने साडाआठ महिना ज्यारे बाकी रह्या हता, त्यारे तेणिने कुखें सर्वार्थ विमानथी, चौद महाखानथी सूचवेला पेहेला. तीर्थकर भावी उपन्या. पड़ी खप्नना अर्थने नहीं जाणता, एवा नानि अने मरुदेवाने सघलाखोए हर्षपूर्वकावीने खप्नना अर्थो कह्या. पळी ज्यारे गुज दिवसें सुखेथी अजुनो जन्म भयो, त्यारे बपन दिकुमारियोयें तेनो
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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