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________________ ३५ पंचमप्रकाश. अर्थः- अजवालीया पक्षमां पडवाने दिवसें दिवसना प्रारंज वखते प्रशस्त अने अप्रशस्त एवो वायुनो संचार जोवो; तेमां पेहेलांत्रण दिवस सुधि चंजनाडीमां ते वहे , पनी त्रण दिवस सूर्यनाडीमां जाय बे, श्रने पालो त्रण दिवस चंझनाडीमां जाय बे; एवी रीते अनुक्रमें - क पूर्णिमासुधि वहे , अने कृष्णपदमा पेहेलां सूर्यनाडी अने पड़ी चंधनाडीमा एम अनुक्रमें वहे . हवे श्लोकोयें करीने उपरना क्रममा व्यतिक्रम होते ते फल कहे . त्रीन् पक्षानान्यथान्वस्य, मासषट्केन पंचता॥ पदाध्यं विपर्यासे, उनीष्टबंधुविपद् नवेत् ॥ ७० ॥ नवेत्तु दारुणो व्याधि, रेकं पदं विपर्यये॥ वित्र्याचदविपर्यासे, कलहादिकमुद्दिशेत् ॥१॥ अर्थः- जो त्रण पखवाडी सुधि विपरीतपणे नाडी वहे, तो ब मासमा मृत्यु थाय, बे पक्षसुधि विपरीतपणे वहे तो वहालां सगांजने पीडा थाय, अने एक पक्षसुधि तेम वहे, तो जयंकर व्याधि थाय, अने बेत्रण दिवस तेम वहे तो, क्लेश आदिक थाय. तथा एकत्रिीयहोरात्रा, एयर्क एव मरुवदन ॥ वर्षे स्त्रिनिर्वान्यामेके, नांतायेंदोरुजे पुनः॥२॥ अर्थः- एक दिवस अने रात्रिए जो सूर्यनाडीज वहे तो त्रण वर्षे मृत्यु थाय, बे दिवसरात्रि वहे, तो बे वर्षे मृत्यु थाय, तथा त्रण दिवसरात्रि वहे, तो एक वर्षे मृत्यु थाय अने चंजनाडी वहे तो रोग थाय. भासमेकं रवावेव, वदन वायुर्विनिर्दिशेत् ॥ अहोरात्रावधि मृत्यु, शशांकेन धनदयं ॥७३॥ अर्थः- एक मास सुधि जो सूर्यनाडीज वहेती रहे तो एक रात्रि दिवसमा मृत्यु थाय, अने जो चंडनाडी तेम वहे, तो धननो क्षय थाय. वायुस्त्रिमार्गगः शंसे, न्मध्याह्नात्परतोमृति ॥ . दशादं तु धिमार्गस्थः, संक्राती मरणं दिशेत् ॥ ४॥ अर्थः-त्रणे नाडीउना मार्गमा रहेलो वायु मध्याह्न पड़ी मृत्यु सू.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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