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________________ पंचमप्रकाश. ३३ अर्थ :- प्रवेश वखतें जीव वायु होय बे, तथा निर्गमन वखते मृत्यु वायु होय बे, माटे तेनुं ज्ञानियोयें एवं फल कहेतुं बे. वे बे श्लोकोयें करीने वायुनं शुभपएं अशुभपएं, तथा मध्यमपनाडी थी कड़े बे. पथेंदोरिंश्वरुणौ, विशंतौ सर्वसिद्धिदौ ॥ रविमार्गेण निर्यातौ प्रविशंतौ च मध्यमौ ॥ ५ए ॥ अर्थ :- चंद्रनाडीने मार्गे प्रवेश करता पुरंदर ने वरुण वायु सर्व सिद्धिने देनारा बे, तथा सूर्यनाडीने मार्गे निकलता श्रने प्रवेश करता ते मध्यम जाणवा. दक्षिणेन विनिर्यातौ, विनाशायानिलानलौ ॥ निःसरंतौ विशंतौ च मध्यमावितरेण तु ॥ ६० ॥ अर्थः- जमणी नाडीने मार्गे निकलता पवन ने दन वायु नाश माटे बे, तथा डावी बाजुथी निकलता ने प्रवेश करता वायु मध्यम जाणवा. हवे नाडीनुं स्वरूप कहे बे. इडा च पिंगला चैव, सुषुम्णा चेति नाडिकाः ॥ शशिसूर्य शिवस्थानं, वामदक्षिण मध्यगाः ॥ ६१ ॥ अर्थ:- डावी बाजुनी इडा नाडीनुं चंद्र स्थान बे, जमणी बाजुनी पिंगला नाडीनुं सूर्य स्थान बे, तथा मध्यमां रहेली सुषुम्णा नाडीनुं शिव स्थान . दवे वे श्लोकोयें करीने ते नाडीयोमां वायुना संचारनुं फल कहे बे. पीयूषमिव वर्षती, सर्वगात्रेषु सर्वदा ॥ वामामृतमया नाडी, सम्मतानीष्टसूचिका ॥ ६२ ॥ वहंत्यनिष्टशंसित्री, संत्री दक्षिणा पुनः ॥ सुषुम्णा तु नवेत्सिन्धि, निर्वाणफलकारणं ॥ ६३ ॥ अर्थः- हमेशां सर्व गात्रोमां अमृतनेज जाणे वरसती, एवी अमृतमय डावी नाडी शुजने सूचवनारी कहेली बे; अने जमणी नाडी वढ़े ५०
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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