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________________ ३४ योगशास्त्र. हवे तेउँनुं फल कहे . रेचनादुदख्याधिः, कफस्य च परिदयः॥ पुष्टिः पूरकयोगेन, व्याधिघातश्च जायते॥१०॥ अर्थः- रेचनथी पेटनी पीडानो, तथा कफनो नाश थाय वे अने पू. रकथी पुष्टि तथा व्याधिनो नाश थाय डे. विकसत्याशु हृत्पद्म, ग्रंथिरंतर्विनिद्यते॥ बलस्थैर्य विटहिश्य, कुंचनाद् नवति स्फुटं ॥११॥ अर्थः- कुंजन प्राणायामथी हृदयकमल तुरत विकखर थाय जे. तथाथदरनी गांव नांगी जाय ,अने प्रगट रीतें बल अने स्थिरतानी वृद्धिथायजे. . प्रत्याहाराद् बलं कांति, दोषशांतिश्च शांततः॥ उत्तराधरसेवातः, स्थिरता कुंनकस्य तु ॥१२॥ अर्थः-प्रत्याहारथी बल अने कांति वधे ने तथा शांतथी दोषनी शांति थाय बे, अने उत्तर अने अधर सेववाश्री कुंजकनी स्थिरता थाय ते. हवे ते प्राणायाम पांचे वायुने जीतवानो हेतु . ते कहे . प्राणमपानसमाना, वुदानं व्यानमेव च ॥ प्राणायामैर्जयेत् स्थान, वर्णक्रियार्थबीजवित् ॥१३॥ अर्थः-प्राणादिकनां स्थान, वर्ण, क्रिया अर्थ अने बीजने जाणनार योगी, प्राणायामें करीने, प्राणवायुने, अपान केतां विष्टादिक दूर करनार . वायुने, उदान कहेतां रसादिकोने जंचे वेश जनारा वायुने, तथा व्यान केतां व्यापक वायुने पण जीती शके बे. हवे ते प्राणोनां स्थानादिक कहे डे. प्राणो नासाग्रहन्नानि, पादांगुष्ठांतगो दरित् ॥ गमागमप्रयोगेण, तऊयो धारणेन वा ॥२४॥ अर्थः-प्राणवायु नासिकाना अग्र नागपर, हृदयमां, नानिमां तथा पगना अंगुठाना अपनागपर होय ,अने ते हरित् वर्णनो होय , तथा श्राववा जवाना प्रयोगें करीने अथवा धारण करवाथी तेनो जय थाय ठे.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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