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________________ चतुर्थप्रकाश. ३४३ अयमात्मैव संसारः, कषायें ज्यिनिर्जितः॥ तमेव तहिजेतारं, मोदामादुर्मनीषिणः॥५॥ अर्थः- कषाय अने इंजियोना विषयोथी परानव पामेलो एवो आज आत्मा, नरक, तिर्यच, मनुष्य, देवरूप संसारनो हेतु , अने ज्यारे तेज आत्मा ते कषाय अने इंजियोना विषयोने जीते जे त्यारे तेनेज पंडितो मोद कहे . हवे कषायोनुं स्वरूप कहे . स्युः कषायाः क्रोधमान, मायालोनाः शरीरिणां॥ चतुर्विधास्ते प्रत्येकं,नेदैः संज्वलनादिनिः॥६॥ अर्थः- प्राणिउने क्रोध, मान, माया अने लोन नामना, चार कषायो होय , अने ते प्रत्येकना संज्वलन, प्रत्याख्यानी, अने अनंतानुबंधि एवा चार नेदो होय . हवे ते संज्वलन आदिकनुं लक्षण कहे . पदं संज्वलनः प्रत्या, ख्यानोमासचतुष्टयं ॥ अप्रत्याख्यानको वर्ष, जन्मानंतानुबंधकः ॥७॥ अर्थः- संज्वलन कषाय एक पखवाडीयां सुधि रहे, प्रत्याख्यानी कषाह, चार माससुधि रहे, अप्रत्याख्यानी कषाय एक वर्ष सुधि रहे, तथा अनंतानुवंधि कषाय बेक जीवितकालसुधि रहे. वली पण तेमनुं लक्षणांतर कहे बे. वीतरागयतिश्रा, सम्यगदृष्टित्वघातकाः॥ ते देवत्वमनुष्यत्व, तिर्यक्त्वनरकप्रदाः॥७॥ अर्थः- ते कषायो अनुक्रमें वीतरागपणुं, यतिपणुं, श्रावकपणुं, तथा सम्यग्दृष्टिपणाना नाश करनारा बे; अने देवपणुं, मनुष्यपणुं, तिर्यचपणुं तथा नरकपणुं अनुक्रमें देनारा . तेर्डमांथी ते चारे प्रकारना क्रोध, श्रनुक्रमें पाणीनी श्रेणि, धूडनी श्रेणि, पृथ्वीनी श्रेणि, तथा पर्वतनी श्रेणि सरखा बे; चारे प्रकारना मान तिनिश, लता, काष्टस्तंन, तथा पाषाणस्तंन सरखा ने. चारे प्रकारनी माया, अवलेखन, गोमुत्रिका, मेषशृंग, तथा
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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