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________________ तृतीयप्रकाश. ३४१ रे आनंद श्रावके पण कयुं के, हे जगवन्, गुरुचरणोनी कृपाथी मने पण अवधिज्ञान बे. पी गौतमस्वामी पण पोताने स्थानकें गया. एवी रीतें वीश वर्ष सुधि श्रावकधर्म रूडी रीतें पालीने यानंद श्रावक त्यांथी चवीने अरुणाविमानमां देव थयो, तथा त्यांथी चवीने महाविदेह क्षेत्रमां ज‍ मोक्ष पाम्यो. एवी रीतें आनंद श्रावकनी कथा जाणवी. हवे वे श्लोकोयें करीने श्रावकनी उत्तर गति कहे बे. प्राप्तः संकल्पेविधत्व, मन्या स्थानमुत्तमं ॥ मोदतेऽनुत्तरप्राज्य, पुण्यसंभारनाक ततः ॥ १५३ ॥ च्युत्वोत्पद्य मनुष्येषु, मुक्त्वा जोगान् सुदुर्लभान् ॥ विरक्तो मुक्तिमाप्नोति, शुद्धात्मांतवाष्टकं ॥ १२४ ॥ अर्थः एवी रीतें श्रावक व्रत पालीने, ते श्रावक सौधर्मादिक देवलोकमां इंद्रपएं, अथवा बीजुं उत्तम स्थानक पामीने, अति उत्तम पुयशाली ने नंद पामे बे, तथा त्यांथी चवीने मनुष्य क्षेत्रमां उतम जाति कुलादिकमां जन्म लेइने, तथा त्यां पण दुर्लन एवा शब्द, रूप, रस, गंध यादिकना जोगोने जोगवीने, अंते विरक्त थने, शुद्ध आत्मा एव ते श्रावक आठ नवमां तो निश्चें करीने मोहने पामे बे; हवे ] योगशास्त्रमा त्रीजा प्रकाशने उपसंहता थका कड़े बे. इति संदेपतः सम्यक्, रत्नत्रयमुदीरितं ॥ सर्वोऽपि यदनासाद्य, नासादयति निर्वृतिं ॥ १२५ ॥ अर्थः एवी रीतें सम्यक् प्रकारें संक्षेपथी रत्नत्रयनुं वर्णन कर्यु, के जेने मेलव्या विना सर्व प्राणीयो मोक मेलवी शकता नथी. एवी रीतें परमाईत श्री कुमारपाल राजाथी सेवाएला, आचार्य महाराजश्री हेमचंद्रजीए बनावेला, अध्यात्मोपनिषत् नामना संजात पहवंध श्रीयोगशास्त्रना, पोतें करेला विवरणसहित त्रीजा प्रकाशनुं विवरण समाप्त थयुं. - -
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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