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________________ ३३६ योगशास्त्र. स्तंजनी पेठे मने जाणीने, बलदो पोताना स्कंधो क्यारे मारा शरीर साथे घसशे ? (श्रा प्रतिमाधारी श्रावकने श्राश्रीने जाणवू.) वने पद्मासनासीनं, क्रोडस्थितमृगार्नकं॥ कदा घ्रास्यंति वक्रेमां, जरंतोमृगयूथपाः ॥१४॥ अर्थः- वननी अंदर पद्मासन करीने बेठेला, तथा खोलामा रहेला बे, हरणनां बच्चा जेने, एवा मने मुखनी अंदर घरडा एवा मृगना यूथपति क्यारे सुंघशे? शत्रौ मित्रे तृणे स्त्रैणे, स्वर्णेऽश्मनि मणौ मृदि॥ मोदे नवे नविष्यामि, निर्विशेषमतिः कदा ॥ १४॥ अर्थः- शत्रुमां, मित्रमां, तृणमां, स्त्रीलंपटमां,वा (स्त्रीसमूहमां)सुवर्णमां, पत्थरमा, मणिमां, माटीमां, तथा मोक्षमा, श्रने नवमां पण तुल्यबुशिवालो हुँ क्यारे थश्श ? .. श्रा कुलकमां पेहेला श्लोकमां जिनधर्मनो अनुराग, बीजा श्लोकमां धर्मपरिग्रहनो मनोरथ, त्रीजामा यतिचर्या पर चडवानो मनोरथ, चोथामां कायोत्सर्गादिकनो मनोरथ, पांचमामा पर्वतोनी गुफा श्रादिकमां रहेवानो यतिचर्यानो मनोरथ, तथा बहामां परम सामायिकना परिपाकनो मनोरथ कह्यो . हवे ते वातनो उपसंहार करता थका कहे . अधिरोढुं गणश्रेणिं, निश्रेणी मुक्तिवेश्मनः॥ परानंदलताकंदान, कुर्यादिति मनोरथान् ॥ १४६॥ अर्थः- मुक्तिरूपी मेहेल पर चडवाने सीडी समान, एवी गुण स्थानकोनी श्रेणिपर चडवाने, मोक्षरूपी लतानां मूल समान एवा मनोरथो करवा. इत्यादोरात्रिकी चर्या, मप्रमत्तः समाचरन् । यथावउक्तत्तस्थो गृहस्थोऽपि विशुध्यति॥१४॥ अर्थः- एवी रीते दिवस अने रात्रिसंबंधि श्राचारने प्रमादरहित आचरतो थको, तथा उपर कहेला प्रतिमादिक वृत्तमा रह्यो यको, ए
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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