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________________ तृतीयप्रकाश. ३१५ जक्त अथवा उपवास जाणवो दिवसना बेल्ला जागें अथवा जवना बेल्ला ari जे प्रत्याख्यान करयुं, ते चरम प्रत्याख्यान जाणवुं. गाय, जैस, बकरी, उंटणी, अने गाडरनां दूध, तथा गाय, जेंस, बकरी, अने गाडरनुं, माखण, उंटणीनां दूधनुं माखण यतुं नथी तथा तल, अलसी, इलट, सवनुं तेल, पिंड ने द्रवरूप गोल, काष्ट, अने पिष्टथी उत्पन्न - एलुं मद्य, माक्षिक, कौत्तिक, अने जमरा संबंधिनुं मद्य, जलचर, खेचर, ने स्थलचर संबंधितुं मांस अथवा चर्म, रुधिर, अने मांस ए त्रण नेदो पण जाणवा. तथा पक्वान्न ए दश प्रकारनां पञ्चखाणथी विगयनुं पचखा था . एवी रीतें गंग्सी, वेढसी श्रादिक पञ्चखाणो जाएवां. एवी रीतें यावश्यक कर्या पक्षी, न्याय्यः कालस्ततो देव, गुरुस्मृतिपवित्रितः ॥ निशमल्पामुपासीत, प्रायेणाब्रह्मवर्जकः ॥ १३० ॥ अर्थः- रात्रिनो पेढेलो पोहोर, अथवा अरधी रात्रिसुधि स्वाध्यायादिक कर्या बाद, देवगुरुना स्मरणथी पवित्र यइने, एटले चउसरण श्रदिक जणीने, प्रायः मैथुनरहित, अल्प निद्रा श्रावकें करवी. निवेदे योषिदंग, सतत्वं परिचिंतयेत् ॥ स्थूलनादिसाधूनां तन्निवृत्तिं परामृशन् ॥ १३१ ॥ " अर्थः- रात्रिवित्या बाद, निद्रा उडते बते, स्थूलनादिक साधुए जेम स्त्रीजनो त्याग क्यों बे; तेनो विचार करतां थकां स्त्रीजनां अंगोनुं स्वरूप विचारखं. ते स्थूलनडजीनुं चरित्र नीचे प्रमाणे जाणवुं. एक पाटलीपुत्र नामें उत्तम नगर बे; त्यां बखंड पृथ्वीनो राजा, तथा लक्ष्मीनो तो जाणे पतिज होय नहीं, एवो, तथा नाश करेल बे, वैरीरूपी कंद जेणे एवो नंद नामें राजा हतो; तेने लक्ष्मीना तो आवास सरखो, तथा बुद्धिनो तो भंडार, एवो शकटाल नामें मंत्री हृतो. तेने, विनय यादिक गुणोनो तो स्थानक समान, तथा अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धिवालो, तथा चंद्र सरखी उत्तम कांतिवालो, स्थूलनड नामें मोटोपुत्र हतो.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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