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________________ ३१२ योगशास्त्र. वकधर्मन, “जं खंडियं" केहेतां जे खंडित कयु होय, "जं विराहियं" केतां जे विराधन कयु होय, "तस्समिछामि उक्कड" कहेता ते सघला अतिचारोने हुं मिथ्या उकृत करुं हुं, पड़ी शिष्य फरीने जरा काया नमावीने, मायामदथी रहित थयो थको अतिचारनी शुद्धिमाटे नीचे प्रमाणे सूत्र नणे. "सबस्सवि देव देवसिय उचिंतिय उन्नासिब कुञ्चिलिए श्वाकारेण संदिसह" एटर्बु कही शिष्य मौन रहे, त्यारे गुरु कहे, के, “पडिकमह" त्यारे शिष्य कहे के, " श्वामि” पड़ी " अनुठिन” नो पाठ शिष्य कहे. __“अनुविनमि अप्निंतर देवसिअं खामे मि” कहेतां हुँ दिवसनी अंदर थएला अतिचारोने दमाववाने तैयार थयेलो डं पड़ी गुरु कहेशे के 'खामेह" त्यारे शिष्य कहेशे के "वं खामेमि” एम कही पृथ्वीतलपर स्पर्श करीने, तथा मुहुपत्तिथी मुख ढांकीने नीचे प्रमाणे पाठ कहे. ___जं किंचियपत्तियं” श्री मांडीने “ तस्स मिठामि उकडं " सुधिनो पाउनणे तेनो अर्थ नीचे प्रमाणे जाणवो. जे कंश आपना संबंधमां मने, अने मारा संबंधमां आपने, आहारमां, पाणीमां विनयमां, वैयावचमां, आलापमां, संलापमा, उच्चासनमां, समासनमां, बच्चे बोलवामां, आपना गयाबाद विशेष बोलवामां, आपने अप्रीति, अथवा परप्रीति, थइ होय, अथवा जे कंश मारो विनय सूक्ष्म अथवा बादर प्रणष्ट थयो होय, अने ते आप जाणता हो, श्रने हुं नहीं जाणतो होलं, तेनो हुँ " मिथ्याउःकृत ” देउ ९. हवे ते प्रतिक्रमण बे प्रकारनु, पेहेवं ध्रुव, अने बीजं श्रध्रुव, जरत अने ऐरवतमा पेहेला श्रने बेहा तीर्थंकरोना तीर्थमां, अपराध थाय, अथवा न थाय, तो पण बन्ने वखत पडिकमणुं करवं, ते ध्रुव अने वाकीना बावीश तीर्थंकरोनां तीर्थोमां, तथा महा विदेहमां तो कारण पज्येज प्रतिक्रमण करवू, ते अध्रुव जाणवू. हवे कायोत्सर्गनुं खरूप कहे . ते कायोत्सर्गना बे नेदो जाणवा, एक चेष्टानो, अने वीजो अनिनवनो. चेष्टानो एटले गमनागमादिकमां ावही पडिकमणामां कराय ठे
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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