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________________ IuH योगशास्त्र. वर्त्ति सरखा. " पडियवरनाथ दंसण धराणं" कोइ पण अटकावी न शके, एवा ज्ञान दर्शनने धारण करनारा, तथा "विश्र बजमाएं" केतां, ज्ञानावरणादिक घातिकर्म, तथा तेना बंधना साधनरूप जवाधिकार; ते रूप जे बद्मस्थपणुं, तेने दूर करनारा तथा " जिणाणं” केतां पोते राग थादिकने जीतनारा, तथा " जावयाणं" केतां बीजाउने पण उपदेश - दिक देने जीतावनारा, तथा "तिषाएं" केतां सम्यग् ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूपी वहाणथी जवरूपी समुद्रने तरनारा, तथा “तारयाणं" केतां बीजाउने पण जवसमुद्रश्री तारनारा तथा “बुद्धाणं " केतां जीवाजीवादि तत्वोने जानारा, तथा "बोहियाणं " केतां बीजाउने पण ते तत्व जणावनारा; तथा " मुत्ताणं मोठागाणं " केतां चतुर्गतिना विपाकरूप जे विचित्र कर्मों, तेथी मुकायेला, अने बीजाउने पण तेथी मुकावनारा. तथा " सवनूणं सङ्घदरिसीणं " केतां सघलुं जाणनारा, अनेस जोनारा. तथा “सिवमयल मरुश्र मणंत मरकय महाबाद मपुणरावत्ति सिद्धिगश्नामधेयं गाणं संपत्ताणं " शिव एटले सर्व प्रकारना उपड़व विनानुं, मोक्ष, तथा अचल एटले खाजाविक तथा प्रायोगिक क्रियाउँथी नहीं चलायमान थाय तेनुं, तथा अरुज एटले व्याधि वेदनाविनानुं, केम के ते व्याधिना हेतुरूप एवां शरीर ने मननो त्यां (मोक्षमां ) - 7 (C व बे; तथा अनंत तां अनंतज्ञानें करी युक्त, तथा अक्षय केतां विनाश न थइ शके तेवुं; तथा अव्याबाध केतां बाधारहित, तथा अपुनरावृत्ति केतां फरीने ज्यांथी पानुं संसारमां श्राव नथी यतुं तेनुं तथा सिगितिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं केतां सिद्धिगति नामनां स्थानक प्रत्ये प्राप्त थएला; तथा जिय नयाणं" केतां जीतेल बे जय जेम एवा, जिणाणं" केतां जिनेश्वर प्रत्ये " नम" केतां नमस्कार था . real पाठ ह्याबाद केटलाको अतीत, अनागत, तथा वर्तमान जिनेश्वरोने वंदन करवामाटे नीचेनी गाथा पण कहे बे. विस्संतागए काले || << जे या सिद्धा, जे संपश्यवमाणा, सवे तिविहेण वंदामि ॥ १ ॥ अर्थ :- जे पेहेलां सिद्ध थएला बे, तथा जे आगामि कालमां
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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