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________________ तृतीयप्रकाश. ज्य हवे पांचमा व्रतना अतिचारो कहे . धनधान्यस्य कुप्यस्य, गवादेः देववास्तुनः ॥ हिरण्यदेम्नश्च संख्या, ऽतिक्रमोत्र परिग्रहे ॥ ए४ ॥ श्रर्थः-धन धान्यनो, धातुउँनो,बलद श्रादिकनो, क्षेत्रवास्तुनो, तथासोना रूपानो,जेधारेती संख्याथी अतिक्रम,ते परिग्रह व्रतना अतिचारोजाणवा. टीका:-धन एटले, जेनी गणत्री, तोल अथवा माप थ थके ते; तथा धान्य एटले घडं आदिक सत्तर प्रकार धान्य, कुप्य एटले सोनां रूपां विनानी, तांबु, सीसुं, कलई विगेरे धातुर्ज, गाय धादिक एटले बेल, जेस, घेटा उंट, विगेरे चोपगांजानवरो, कुकडा, पोपट आदिक पतिज, तथा दासदासी श्रादिक वे पगोवालांजाणवां. क्षेत्र त्रण प्रकारनां. एक तो जेमां कोस आदिकथी पाणी पावामां आवे ने ते, बीजु जे वरसादना पाणीथी सिंचाय के ते. अनेत्रीजु, जेमां उपर प्रमाणेनी बन्ने प्रकारनी क्रिया थाय ने ते. वास्तु एटले घर आदिक तेना पण त्रण नेदो, जोयलं, मेहेल, तथा जोयरां उपरे मेहेल करवो ते. अने घडेलु अथवा नहि घडेदु एबुं रु' अने सोनुं एटली वस्तुऊनो, जे परिमाण उपर प. रिग्रहराखवो; ते परिग्रहना अतिचारो जाणवा. अहीं कोई शंका करे के, अंगीकार करेलां व्रतोनी संख्यानो जे व्यतिकम, ते तो तेनो नंगज कहेवाय, अतिचार शानो कदेवाय ? तेने माटे हवे कहे बे. बंधनाद्भावतो गर्ना, योजनादानतस्तथा ॥ प्रतिपन्नव्रतस्यैष, पंचधापि न युज्यते॥ एय॥ अर्थः- अंगीकार करेलां व्रतनो बंधन, जाव, गर्न, जोडाण, तथा श्रादान, ए पांच रीतें, पण अतिचार लगाडवो लायक नयी.. टीका:- जो के सादात् व्रतजंग थतो नथी, पण बंधन आदिक पांच हेतुउँथी, जो के पोतानी बुद्धिथी व्रतजंग नथी करतो, तो पण तेने अतिचार लागे . धन धान्यने बंधनथी अतिचार एम जाणवो, के, को फायदालायक वस्तु वेचाती देवा श्रावे, त्यारे तेने कहेवु के, मारा व्रतनी मुदत खलास थये हुँ ते तारी पासेथी देश एम कही जे जावथी तेनी
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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