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________________ १६ योगशास्त्र. हाएला एवा पण श्री प्रभु मृत्यु पाम्या नहीं, माटे तेने तो हथियारथी मारी शकाय तेम नथी, माटे हवे शुं उपाय करवो? अनुकूल उपसर्गोथी हवे ते कोइ रीतें पण दोजाय तेम बे ? ( माटेतेनी परीक्षा करूं ) एवं विचारि, विमानमा रही आागल यावीने ते कड़ेवा लाग्यो के, दे महर्षि ! ढुं वे तप ने तेजी तमारापर तुष्ट थयो बुं; अने हवे या तमारा शरीरने क्लेशकारी एवा तपथी सर्यु; माटे हवे तमो मारीपासे कंश्क मागो? तथा हवे कं पण शंका करो मा ? छाने कहो के हवे तमोने शुं श्रपुं ? वली तमारे या शरीरनुं शुं प्रयोजन बे? ज्यां इछामात्रथीज हमेशां मनोरथ पूराय बे, एवा स्वर्गप्रत्ये हुं तमोने लइ जावं. अथवा, श्र नादि जवमां उत्पन्न थयेलां कर्मोंथी मुकावनारूं बे लक्ष जेनुं, एवा एकांत परमानंदरूप मोक्षप्रत्ये शुं तमोने लइ जजं ? अथवा सघला मंडलाधीशोना मस्तकोमा लालित थयेलुं वे शासन जेथी, तथा इद्धिथी उत्कृष्ट एवं राज्य, तने हुं हीं श्रपुं. एवी रीतनां लालचनां वाक्योथी पण ज्यारे प्रभु को जायमान न यया, तथा ज्यारे तेनो उत्तर न मल्यो त्यारे ते विचारखा लाग्यो के, आणे तो मारी सघली शक्ति निष्फल करी, पण हवे एक कामदेवनो हुकम सफल था, कारण के, कामदे - वना हथियाररूप एवी स्त्रियोथी कटादित ययेला, महापुरुषो पण पोताना प्रतने लोपी नाखे बे, मनयी एम विचारि तेणे देवांगनार्ज, तथा तेने सहायरूप एवी व तु पण बनावी. कोकिलाना मनोहर शब्दोयी करेली बे, प्रस्तावना जेणें, तथा कंदर्प (कामदेव) ना नाटकनी नटी समान वसंत श्री (वसंतशोना) शोजवा लागी. वली खीली रहेलां कदवानां पुष्पोना परागथी ( रजःकणथी) मुखना सुगंधने उत्पन्न करती, तथा दिशा रूपी स्त्रियोनी दासी सरखी ग्रीष्मनी लक्ष्मी शोजवा लागी. वली केतकीनां पुष्पोना मिराथी, कामदेवना राज्याभिषेकने विषे जाणे तिलकोज करती होय नहीं, एवी वर्षाऋतु शोजवा लागी नवां नील (श्याम ) कमलोना मिशथी, हजारो श्रांखोवाली थइनें, जाणे, पोतानी उत्कृष्ट शोजाने जोती होय नहीं, एवी शरद् ऋतु शोजवा लागी. वली गपिकानी पेठे, मोगरो तथा गोटाथी आजीविका चलावती शिशिर ऋतु, शोजवा लागी वली सफेद अक्षरो सरखी, प्रगट थपली मोगरानी कलि · "
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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