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________________ तृतीयप्रकाश. ५३ शी जरुर बे? हवे सामायिक करनार श्रावकना बे नेदो बे; एक शद्धिवालो, अने वीजो शद्धिविनानो.तेमांथी शद्धिविनानो चार जगोये सामायिक करे; जिनमंदिरमां, साधुनी समीपे, पौषधशालामां अथवा पोताने घेर. अथवा ज्यां थाकीने बेगे होय त्यां, अथवा ज्यां कंश पण कायविना नवरो वेगे होय त्यां पण सामायिक करी शके. हवे साधु समीपे ज्यारे सामायिक करे, त्यारें नीचे प्रमाणे विधिश्री करे; मने कंजय नथी; को साथे मारे क्लेश नथी, मारे कोनुं करज नथी, एम विचारि घेर सामायिक लापथिकी शोधतो तथा सावध वचननोनो त्याग करतो थको, साधु पासे जश्, सापडा श्रादिकनो खप होय, तो तेना स्वामिनी रजा लेश, तथा श्लेष्म श्रादिक नहीं करी, कदाच करवू होय, तो पण निरवद्य जगापर, पोंजीने करे. पनी त्यां पांच समिति अने त्रण गुतिसहित, साधुने नमस्कार करी नीचे प्रमाणे पाठ उचरे, __ " करेमि नंते सामाश् नंते सामाश्य, सावजं जोगं पच्चखामि, जावसाहूय पजावासामि, मुविहं तिविदेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स नंते पडिकमामि, निंदामि गिरिहामि अप्पाणं वोसिरामि." अर्थः- हे नदंत, हुं ज्यांसुधि साधुनी पर्युपासना करूं, त्यांसुधि, मन, वचन श्रने कायाए करीने, सावध कार्य करूं नहीं, अने करावु नहीं. ( अनुमोदननुं पञ्चकाण गृहस्थथी यश् शके नहीं.) वली हे नदंत, हुँ तेनां पच्चखाण करुं बुं, निंदा करुं बुं, गर्दा करुं हुं (आत्मसा दिए निंदा, तथा गुरुसादीए गर्दा कहेवाय.) श्रहीं " करेमि नंते सामाश्यं" एम कहीने वर्तमान सावध योगर्नु पच्चखाण कयु; “ सावज जोगं पचखामि" एम कहीने नविष्यकाल संबंधि, तथा " पडिकमामि ” एम कहीने नूतकाल संवंधि सावध योगर्नु पञ्चखाण कयु.. ___ एम करीने साधु समीपे रहीने धर्मशास्त्रो सांजले, गणे, पुने विगेरे करे. एवीज रीतें देरामां पण करे. घरे अथवा पौषधशालामां, सामायिक लश्ने, हालवा चालवाविना स्थिर रहे. __ हवे जे शद्धिमान् होय, ते, अर्थात् राजा आदिक हाथीपर बेसीने, उपर बत्र धराते थके, चामर बिंझाते थके, वाजां वागते बते, बंदिउँ
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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