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________________ २४४ योगशास्त्र. हीं को शंका करे के, जेमां कंइ जाजन श्रादिक धोवां न पडे अथवा रात्रिए रसोइ पण करवी न पडे, एवा तैयार लाडु, तथा खजुर यादिक मेवो खावामां रात्रिए शुं दोष बे ? तेने माटे कहे . नादय सूक्ष्मजंतूनि, निश्यद्यात्प्राशुकान्यपि ॥ प्युद्यत्केवलज्ञानै, नहतं यन्निशाशनं ॥ ५३ ॥ -- अर्थः- रात्रियें, जोवाने अशक्य एवा कंथुआ आदिक बे सूक्ष्म जंतु जेनी अंदर एवां, प्राशुक लाडु, फल व्यादिक पण नहीं खावां, कारण के, उत्पन्न थयुं बे, केवलज्ञान जेने, एवायें पण रात्रिभोजन अंगीकार कर्यु नथी. ( केमके ते तेमां जंतुना संजवने जोइ रह्या बे.) निशीथाप्यमां पण तेमज कयुं बे. हवे अन्य दर्शनीर्जना मत प्रमाणे पण रात्रिभोजननो निषेध करे बे. धर्मविन्नैव मुंजीत, कदाचन दिनात्यये ॥ बाह्या अपि निशानोज्यं यदनोज्यं प्रचक्षते ॥ ५४ ॥ अर्थ:- श्रुतधर्मने जाणनारा माणसें, कोइ वखते पण रात्रि जोजन कर नही, कारण के, अन्य दर्शनी पण रात्रिभोजननो निषेध करे बे. ते नीचे प्रमाणे. त्रयीतेजोमयो नातुरितिवेदविदो विङः ॥ तत्करैः पूतमखिलं, शुभं कर्म समाचरेत् ॥ ५५ ॥ अर्थः- रुग्वेज, यजुर्वेद, तथा सामवेदनां लक्षणरूप वे तेज जेनी अंदर, एवी रीतना सूर्यने, वेदजाणनारोर्डए जाएयो बे, माटे तेना ( सूfor ) किरणोथी पवित्र थलुं एवं सघलुं शुभ कार्य कर. वली पण तेज कड़े बे. नैवादुतिर्नच स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनं ॥ दानं वा विदितं रात्रौ नोजनं तु विशेषतः ॥ ५६ ॥ अर्थः- रात्रि यज्ञनी आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवपूजन, तथा दान, एटलां वानां करवां नहीं, छाने जोजन तो सर्वथा प्रकारें नज करवुं.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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