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________________ २३४ योगशास्त्र. वली ते मद्यमां केटलांक जंतु पण पेदा थाय डे, माटे जीवहिंसा थकी वीता प्रणीयें कदी पण ते पीयूँ नहीं. वली मद्यपान करनारो माणस दीधेलाने नहीं दीधेदुं इत्यादि हमेशां विपरीतज नाषण कस्या करे बे; वली ते वधबंधन आदिकनो जय नहीं राखतां घरमांथी, बहारथी, अथवा मार्गमां पण शंकारहित चोरी करे , वदी तेवो माणस वाखिका, युवान, वृक्ष, चंडालणी विगेरे परस्त्रीने पण जोगवे . वली शास्त्रो. मां पण संनलाय डे के मद्यांध थयेला सांबकुमारे कुलनो नाश करावी पितानी नगरीने पण बाली नखावी. वली तेवा माणसने मदिराथी पण कदी संतोष वलतोज नश्री. वली अन्य दर्शनीए पण पुराण था. दिकमां मद्यनो निषेध कयों ने, हवे मांसना दोषो देखाडे जे. चिखादिषति यो मांसं, प्राणिप्राणापहारतः॥ जन्मूलयत्यसौ मूलं, दयाख्यं धर्मशाखिनः॥१७॥ अर्थः- प्राणीजना प्रोणोनो नाश करीने जे माणस मांसजें लक्षण करवाने श्छे , ते माणस, धर्मरूपी वृदना दया नामनां मूलने, मूलमांथी उखेडी नाखे . अशनीयन् सदा मांस, दयां यो दि चिकीर्षति ॥ ज्वलति ज्वलने वल्ली,सरोपयितुमिबति ॥रए॥ अर्थः- जे माणस हमेशां मांस खातो थको, दया करवाने श्छे डे, ते माणस बलता अग्निमां वेलडीने रोपवाने श्वे . _हवे अहीं कोई शंका करे के, प्राणीजनो घात करनार को बीजा होय, अने मांस खानार को बीजो होय, माटे तेमां हिंसा कोने लागे? तेने माटे कहे . हंता पलस्य विक्रेता, संस्कर्ता नदकस्तथा ॥ क्रेताऽनुमंता दाता च, घातका एव यन्मनुः॥२०॥ अर्थः- प्राणीउनी हिंसा करनार, मांसनो वेचनार, संस्कार करनार, जक्षण करनार, वेंचातुं लेनार, अनुमोदना करनार, तथा मांसनुं दान
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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