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________________ प्रथमप्रकाश. नमेली ने कोकीयो जेनी, तथा थोडां करुणाश्रुथी नीनी थयेली, एवी श्री वीरप्रजुनी आंखोप्रत्ये कल्याण था ? टीका:-गाम तथा नगरो प्रत्ये विहार करता प्रजु, घणाम्लेडोथीश्राकुल ययेतीएक दृढ नूमिप्रत्ये पहोच्या; तथा त्यां श्रमिनो तप करीने ते पेढाल नामे गामनी पासे, पेढाल नामना बगिचामां पोलाश नामे देवलमां दाखल थया तथा त्यां जीवजंतु विनानी शिलापर, धुंटणसुधि हाथो लंबावीने, तथा पृथ्वी तरफ शरीर वालीने, तथा मनने स्थिर करीने, तथा आंखोने पण निमेषरहित करीने, प्रजु, एक रात्रिनी महाप्रतिमाथी रह्या. हवे ते वखते सुधर्मे,सुधर्मा सजामां, चोराशी हजार सामानिक देवताउँथी विटाश्ने, तथा त्रयत्रिंश अनेत्रायत्रिंशनी त्रण पर्षदाथी तथा चार लोकपालोथी, तथा असंख्यात प्रकीर्णकथी, तथा त्रण दिशाउँमा दृढताश्री तैयार श्रयेला चोराशी हजार अंगरदकोश्री, तथा सेनाथी विंटाएला सात सेनाधिपतिथी, तथा किल्बिष आदिक श्रानियोगिक देवदेवियोना समूहथी, घेराएलो, तथा त्रण जातनां वाजां आदिकना विनोदशी वखतने कहाडतो, तथा दक्षिणार्ध लोकनुं रक्षण करनारो, इंस सिंहासनपर बेगे हतो, ते वखते अवधिज्ञानथी प्रजुने, एवी रीतें रहेला जाणीने, त्यांथी उठीने, तथा पावडी बोडीने, तेम उत्तरासन करीने, तथा डाबो पग पृथ्वीपर मूकीने, तथा जमणो पग उंचो करीने, पृथ्वीतलपर माथु नमावीने नमुत्थणाथी ते (प्रजुनी) स्तुति करवा लाग्यो, तथा सघली सजाने उद्देशीने अने सर्व अंगपर रोमांचित थश्ने, ते इंश कहेवा लाग्यो के, अरे! अरे! सघला सुधर्मा देवलोकमा रहेवावाला देवो, श्रीमहावीरखामिनो अनुत महिमा तमो सांजलो ! पांच सुमतिने धारनारा, तथा त्रण गुप्तियोथी पवित्र थयेला, तथा क्रोध, मान, माया, अने लोनथी रहित तथा आश्रवरहित, तथा अव्य, देत्र, काल अने नावमा अप्रतिबक बुद्धिवाला, तथा नासिकापर नयनो राखीने ध्यानमा रहेला, एवा ते वीरप्रजु, देव, दानव, यद, राक्षस, जुवनपति तथा माणसोथी पण ध्यानथी चलायमान थर शके तेम नथी. ते सांजली, शकसामानिक देव, ललाटपटमां धारण करेली चुकुटीना जंगथी जयंकर थश्ने, तथा क्रोधथी कंपता बे, होठ जेना, तथा लाल
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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