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योगशास्त्र.
उत्तम, सोकना अधीश, लोकोना हितकारी, पुरुषोमां उत्तम, पुंडरीक समान, पुरुषोमां सिंहसमान, पुरुषोमां गंधहस्ति समान, चतु देवावाला, अजय देनारा, वोधि देनारा, मार्ग देखाडनारा, धर्म देवावाला, धर्मनो उपदेश देनारा, शरणुं देवावाला, धर्ममां सारथीसमान, धर्ममा दोरनारा, धर्ममां चक्रवर्ति, बद्मस्थपणाथी रहित, सम्यग् ज्ञान दर्शनने धारण करनार, जिन, जाप करवा लायक तरेला अने तारनारा, मुकाएला (कमोथी) मुकावनारा, तथा वोध पामेला,अने बोध देनारा, एवा तमो प्रत्ये नमस्कार था? तेम वली, सर्वज्ञ खामी, सघ जोनारा, सघला अतिशयोनां पात्ररूप आठ कमोंने नाश करनारा, वली क्षेत्र, पात्र, तीर्थ तथा परमात्मा, तथा स्याहाद कहेवावाला, वीतराग तथा मुनि, एवा तमो प्रत्ये नमस्कार थाई? वली, पूज्यना पण पूज्य, तथा मोटामां मोटा, तथा श्राचार्योना पण आचार्य, ज्येष्ठोमां अतिज्येष्ठ तथा सर्वव्यापी, योगियोना स्वामी, पवित्र तथा पवित्र करनारा, अनुत्तर, तथा उत्तर,योगोना श्राचार्य, निर्मल करनारा, उत्कृष्ट, अग्रेसर बृहस्पति तथा मंगलरूप एवा तमो प्रत्ये नमस्कार था ? वली स्वर्ग मृत्यु अने पातालमा एकज वीर, तथा पहेलांधीज उगेला सूर्यसमान, ऊर्जुवः स्वः एवी रीतनी वाणीथी स्तववा लायक, एवा तमो प्रत्ये नमस्कार था? वली सर्वने प्रिय, सर्वज्ञ सर्व श्रर्थ रूप अमृत समान, उदय थयेल ब्रह्मचर्य जेने एवा, तथा यथार्थ कहेनार, तथा (जवरूपी समुप्रथी) पार पहोचेला, तथा डहापण वाखा, विकाररहित, रक्षण करनारा, वज्रषजनाराच संघयणवाला, तत्व जोनारा, त्रणे कालमांजाणनारा, जिनें, स्वयंनू, तथा ज्ञान, बल, वीर्य, तेज, शक्ति तथा श्राश्चर्यवाला, आदिपुरुष, परमेष्टि, महेश, ज्योतितत्ववाला, तथा सिद्धार्थ राजाना कुलरूपी क्षीरसमुज प्रत्ये चंड समान, धीर, तथा त्रण जगतना स्वामि, एवा तमो महावीर प्रत्ये नमस्कार था? एवी रीते स्तुति करीने, तथा नमस्कार करी, प्रजुने लश्ने, तुरत इंसें, तेमनी माताने सोंग्या पोताना वंशनी वृद्धि करवाथी, मातपितायें तेमनुं यथार्थ “वर्धमान" नाम पाड्यु, "हुँ पेहेला सेवं, हुं पेहेलां से" एवं वोलता जक्त एवा देव, दानवोथी सेवाता ते प्रजु अमृतने वर्षनारी दृष्टिथी जाणे पृथ्वीने सिंचता होय नहीं, एवा, तथा एक ह