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________________ ॥ श्रीजिनाय नमः॥ श्रीमत् हेमचंसाचार्यविरचित योगशास्त्र, भाषांतर. सिद्ध थयेती योगनी अद्भुत संपत्तिवाला, तथा मुक्ति प्राप्त थवाथी शोजायमान एवा वीर परमात्माने नमस्कार करीने, जव्य जीवोने प्र. तिबोध करवा माटे, योगशास्त्रनुं विशेष टीकायुक्त वर्णन करुंडं. नमो उर्वाररागादि, वैरिवारनिवारिणे॥ अर्हते योगिनाथाय, महावीराय तायिने ॥१॥ अर्थः- उखें वारी शकाय, एवा रागादि वैरिना समूहने नाशकरवावाला, तथा योगीना खामि, श्रने (सर्व जीवोg) रक्षण करनारा ए. वा वीर परमात्माने नमस्कार था ? टीका:- आ श्लोकमां, "महावीराय" ए विशेष्य पद ;जे विशेषेकरीने कमोंने दूर करे, ते "वीर" कहेवाय; वती जे कर्मोनो नाश करे, तथा तपथी शोने, तथा जे तप अने वीर्ययुक्त होय ते "वीर" कहेवाय तथा जे वीजा वीरपुरुषोनी अपेक्षाए मोटा होय, ते "महावीर" कहेवाय. तेमज नगवानना जन्मोत्सव वखते स्नानपूजा समये अने शंका थर के, या प्रजनुं शरीर तो नानुं , तेथी पाणीनो आटलो बधो नार केम सहन करी शकशे? एवा इंजनी शंकारूपी शल्यने दूर करवा वास्ते, प्रजुए डावा पगना अंगुगथी मेरुपर्वतने दोनाव्यो जेथी तेनां शिखरो कंपवा लाग्यां, तथा कंपायमान थती पृथ्वीपर समुघ दोलायमान थवा लाग्यो तेसमये ईमें अवधिज्ञानथी जोयुं, तो प्रजुना प्रजावनो अतिशय जोवाथी आश्चर्य पामीने, तेणें प्रजुनु "महावीर" नाम पाड्यु. अने ते नामने प्रजुए अनादि नवमां उत्पन्न थयेला प्रौढ कोने नाश करवाना बलश्री सार्थक कयु. तथा नगवाननुं "वर्धमान" एवं नाम मातपिताए कयु हतुं. वाकीनां विशेषणो तो, पोताना खरा अर्थाने उत्पन्न करतां थकां जगवानना चार अतिशयोने प्रगट करे : तेमा पूर्वार्धधी (पेहेवा श्र
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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