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________________ वितीयप्रकाश. २०३ जाय बे, तथा धर्म, शुजाश्रव श्रने संवरमां श्रावी जाय . हवे ते सम्यक्त्व त्रण प्रकारनुं बे; औपशमिक, झायोपशमिक तथा दायक. तेमां उउपशम सम्यक्त्व एटले, अनंतानुबंधिनी चोकडी, तथा मिथ्यात्व मोहनी ने, राखमां ढांकेला अग्निनी पेठे उपशमावी राखवू ते. अने ते उपशम सम्यक्त्व, अनादि मिथ्यादृष्टि जीवने; यथाप्रवृत्ति आदि त्रण करण करवा पूर्वक, अंतर्मुहूर्त सुधि, चारे गतिमां होय . अथवा उपशमश्रेणियें चडेलाउने पण होय , हवे दायोपशमिक एटले उदय श्रावता एवा मिथ्यात्व मोहनी, तथा अनंताबंधिनी चोकडीने दय करवारूप उदय न आवता एवा मिथ्यात्व तथा अनंतानुबंधिनी चोकडीने उपशमाववारूप, ते दायोपशमिक सम्यक्त्व कदेवाय. अने ते सत्कर्मोनु वेदवारूप डे, तथा उपशमसम्यक्त्व सत्कर्मने वेदनारु नथी, तेथी ते बन्नेमां तफावत . अने ते दायोपशमिक सम्यक्त्वनी उत्कृष्ट स्थिति सठ सागरोपमथी कंक अधिक बे. तथा त्रीजुं दायक सम्यक्त्व एटले मिथ्यात्वमोहनीय तथा अनंतानुबंधिनी चोकडीनो मूलमांश्री जे नाश, ते दायक सम्यक्त्व कहेवाय. अने ते सादि अनंत नांगे , ने सम्यक्त्व बोधिरूपी वृदनुं मूल बे. पुण्यरूपी नगरनो दरवाजो बे, मोदरूपी मेहेलनो पायो , तथा सर्वसंपत्तिनो नंडार . वली ते रत्नोनो जेम समुफ, तेम गुणोनो ते आधार ने, वली चारित्र रूपी धननुं ते जाजन ,माटे ते सम्यक्त्वनी कोण प्रशंसा न करे? सम्यक्त्वथी वासित थएला प्राणीमां ज्ञान रही शके बे, केमके सूर्यथी तेजयुक्त थयेला जुवनमां अंधकारनो प्रचार शी रीते थश् शके ? वली ते सम्यक्त्व नरक तथा तिर्यंच गतिमां जवाने आडी जोगल समान , तथा देव, मनुष्य अने मोद गतिना घारनी चावी . वली ते सम्यक्त्वश्री वासित थएनो प्राणी ज्यांसुधि समकितने न वमी नाखे, अने पूर्वे आयुर्बध पडेलो न होय तो, खरेखर वै. मानिक देव थाय. माटे जे माणस एक अंतर्मुहूर्त सुधि पण सम्यक्त्व रूपी रत्नने फरसीने तजी दीए बे, ते माणस लांबा वखतसुधि नवमां जटकतो नथी, (अर्थात् तेने अर्ध पुजल परावर्तन उपरांत नटकवू पडे नहिं ) सारांश के जो तेटला खल्प समयसुधी सम्यक्त्व धारिने महोटुं फल मले. तो पड़ी घणा वखत सूधी धरनारने फल थाय तेमां शुं कहे.
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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