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________________ प्रथमप्रकाश करनार एटखे स्वजोगमा तथा देवतातिथिना पूजनमा खेती, वेपार, चाकरी आदिकथी पेदा करेला अव्यने अनुसारें खरच करनार, कडुंबे, के कमाणीथी चोथो जाग,जंडारमां, चोथो नाग वेपारमां, चोथो नाग धर्म तथा उपजोगमां, तथा चोथो नाग परना पोषणमां वापरवो अने श्रावक उपरांत खरच तो, रोग जेम शरीरने तेम माणसने वेपारथी अशक्त करे बे.हवे धनने अनुसारें वेष करनार, एटले धन अने उपलक्षणथी, उमर, श्रवस्था, देश, काल, जाति, आदिकने अनुसार वेष करवाश्री, लोको तरफनी हांसी, हलकापणुं अन्यायपणा आदिक दोषोनो संचव थतो नथी. श्रने जे माणस श्रावक बतां कृपणपणाधी खरच करतो नथी ते लोकमां निंद्य थश्ने धर्मनो पण अधिकारी थतो नथी. हवे बुद्धिना आग्गुणो वालो, एटले, शुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, उह, अपोह, अर्थविज्ञान, तथा तत्वज्ञान. शुश्रुषा एटले सांजलवांनी श्छा, श्रवण एटले सांजल, ग्रहण एटले शास्त्रोना अर्थोनुं ग्रहण करवू ते, धारण एटले जुलबुं नही ते, उह एटले जाणेला अर्थनु अवलंबन लश् तेवाज बीजा अर्थोमां तर्क करवाते; अपोह एटले उक्ति युक्तिथी, विरुष्क एवा जे हिंसादिक, तेथी नुकशाननी बुद्धियें पाबा हव्वं ते, अथवा उह एटले सामान्य ज्ञान, अने अपोह एटले विशेषज्ञान, अर्थविज्ञान एटले उहापोदना योगथी, मोह अने संदेहनो नाश थर, जे ज्ञान थाय ते, श्रने तत्वज्ञान एटले, उहापोहना ज्ञानथी शुझ थएवँ था आमज , एवो जे निश्चय थवो ते. एवी रीतना शुश्रुषादिक गुणोवाला डाह्या माणसोने कोश दिवसें पण अकल्याण थक्ष शकतुं नथी. हवे हमेशां धर्म सांजलनार एटले हमेशां धर्म सांजलवामां तत्पर, कारण के हमेशां धर्म सांजलवाथी मननो खेद नाश पामे , अने उत्तरोत्तर गुणोनी प्राप्ति थाय ने. हवे अजीर्ण होते ते जोजन तजनार एटले,पेहेलां जमेबुं अनाज पच्युं न होय,तो न जोजन न करनार कारण के अजीर्ण होते बते पण जोजन करवाथी तो रोगोनी वृद्धि थाय . अजीर्णनां उचिह्नो , मल तथा पवननो इष्ट गंध, विष्टानो बन्नेद, गात्रनुं गौरवपणु, अरुचि तथा अशुद्ध उंडकार, ए ब श्रजीर्णनां चिहो जाणवां, तथा अवसरें नोजन करनार, एटले ज्यारे जठरामि प्रदीत थाय त्यारे जोजन करवू, अने तेथी विपरीत रीतें नोजन १३
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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