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________________ - - आचारचिन्तामणि टीका अवतरणा विणा सिद्धजणं भूमि,-णिहाणं णेव लब्भइ । मुयचारित्तधम्मेण, विणा णो णाणमप्पणो ॥३॥ अप्पणाणं विणा णेच, तत्तातत्तविणिच्छओ। । तं विणा व भयाणं, जायएऽमियभावणा ॥४॥ विसुद्धज्झाणसंपत्ती, गंतराऽमियभावणं । विणा विसुद्धझाणं णो, खवगस्सेणिरप्पई ॥ ५ ॥ अन्नोवाएण केणावि,-खवगस्सेणिणा विणा । बितीयपाओ मुकस्स, झाणस्स नहि लन्भई ॥६॥ छायाश्रुतचारित्रधर्मेण, विना नो ज्ञानमात्मन ॥ ३ ॥ आत्मज्ञानं विना नैव, तस्वाऽतत्त्वविनिश्चयः । तं विना नैव भव्यानां, जायतेऽमृतभावना ॥ ४ ॥ विशुद्धध्यानसमाप्ति, - नन्तिराऽमृतभावनाम् । विना विशुद्धध्यान नों, क्षपकश्रेणिराप्यते ॥५॥" - अन्योपायेन केनापि, क्षपकणिना विना । ... .. . . द्वितीयपादः शुक्लस्य, ध्यानस्य नहि लभ्यते ॥६॥ . सिद्धअञ्जन के अभाव में पृथ्वी के भीतर का खजाना नहीं प्राप्त किया जा सकता, इसी प्रकार श्रुत चारित्र के विना आत्मा को सम्यज्ञान नहीं होता ॥ ३ ॥ , आत्मज्ञान के अभाव में तत्त्व-अतत्व का निश्चय नहीं हो सकता, और तत्त्व अतत्त्व का निश्चय हुए विना भव्य जीवो को अमृतभावना नहीं हो सकती ॥ ४ ॥ अमृतभावना के अभाव में विशुद्ध ध्यान की प्राप्ति नहीं होती, और विशुद्ध ध्यान के विना क्षपकश्रेणी पर आरोहण नहीं हो सकता ॥ ५ ॥ .. क्षपक श्रेणी के सिवाय किसी अन्य उपाय से शुक्ल-ध्यान का एकत्ववितर्क अविचार नामक दूसरा पाया नहीं प्राप्त किया जा सकता ॥ ६ ॥ સિદ્ધાંજન વિના પૃથ્વીની અંદર પ્રજાને પ્રાપ્ત કરી શકાતું નથી. એવી જ शत श्रुत-यारित्र विना मात्मज्ञान थतु नथी. ॥ ३ ॥ આત્મજ્ઞાનના અભાવથી તત્ત્વ-અતત્ત્વને નિશ્ચય થઈ શકતો નથી, અને તવઅતત્ત્વને નિશ્ચય કર્યા વિના ભવ્ય અને અમૃતભાવના થતી નથી | ૪ | અમૃતભાવનાના અભાવથી વિશુદ્ધ ધ્યાનની પ્રાપ્તિ થતી નથી; અને વિશ4 म. मा-५
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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