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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अवतरणा (१) संस्कारवत्त्वम् = प्रकृतिप्रत्ययलिङ्गवचनादियुक्तत्वम् । (२) उदात्तत्वम् = श्रोतृसुवेद्यत्वम् (३) उपचारोपेतत्वम् = अप्राज्ञजनभाषावदश्लीलादि दोषरहितत्वम् । (४) गम्भीरध्वनित्वम् = मेघवद् गम्भीरनादवत्त्वम् । (५) । अनुनादित्वम् = प्रतिशब्दोपेतत्वम् । (६) दक्षिणत्वम् = ऋजुत्वम् । (७) उपनीतरागत्वम् = मालकोशरागगुणवत्त्वम् , यथा मालकोशरागः प्रस्तरानपि द्रावयति, तथा कठिनचेतसोऽपि जनान् भगवद्वचनं द्रावयतीति हृदयद्रावकत्वमिति भावः । (८) महार्थत्वम् = मोक्षमार्ग यहा सत्य वचन का अर्थ है—भगवान के बचन, क्योंकि वे सबके हित करने वाले है । उन वचनों के-वाणीके अतिशय अर्थात् गुण पैतीस हैं । परम्परा के अनुसार वाणीके पैंतीस गुण इस प्रकार माने जाते हैं (१) संस्कारवत्त्व-प्रकृति, प्रत्यय, लिङ्ग, वचन आदि से युक्त होना (२) उदात्तता-श्रोताओ के लिये सुगम । (३) उपचारोपेतता-गँवारो की भाषा में पाये जाने वाले अश्लीलता आदि दोषो से रहित । (४) गंभीरध्वनित्व-मेघकी समान गम्भीर नाद होना । (५) अनुनादित्व-प्रतिध्वनिसे युक्त होना । (६) दक्षिणता-सरलता। (७) उपनीतरागवत्त्व-मालकोश राग सरीखा गुण होना, अर्थात् जैसे- मालकोश राग पाषाण को भी पिघला देता है, उसी प्रकार भगवान् के वचन कठोर हृदय को भी पिघला देते हैं। तात्पर्य यह है कि भगवान के वचन बडे ही हृदयद्रावक होते हैं। (८) महार्थता-भगवान् के बचन मोक्ष-मार्ग के प्रतिपादक होने से महत्वपूर्ण और अर्थ (१) २२४२१त्व-कृति, प्रत्यय, लिंग, वयन पाहिथीयुत मन. (२) हात्तताश्रोतामा भाटे सुगम. (3) ७५यारोपेतता-भूर्म-neी माणुसोनी भाषामा लेवामा આવતા અસલીલ-ખરાબ, શરમ આવે તેવા ભાષાના દોષ રહિત. (૪) ગંભીરધ્વનિત્વમેઘના २वाली२ २५४. (५) मनुनाहित्य-प्रतिध्वनियुतडा (५७॥३५ ). (६) इक्षिताસરલતા (૭) ઉપનીતરાગ––માલકોશ રાગ જે ગુણ હોવુ. અર્થાતુ-જેવી રીતે માલકોશ રાગ પથ્થરને પણ પિગળાવી દે છે. તે પ્રમાણે ભગવાનના વચને કઠેર હદયવાળા માણસને પણ પિગલાવી દે છે, તાત્પર્ય એ છે કે–ભગવાનના વચન મહાન હદય દ્રાવક હોય છે. (૮) મહાWતા—ભગવાનના વચન મોક્ષમાર્ગનું પ્રતિપાદન કરનારા છે તેથી મહત્વપૂર્ણ અને અર્થથી યુક્ત હોય છે. (૯) અવ્યાહતપૌર્વાપર્ય—પૂર્વાપર
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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