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________________ ६१२ लोगागासपए से निगोयजीवं ठवेहि एक्केकं । एवं ठवेज्जमाणा, हवंति लोगा अणन्ताओ ॥ १ ॥ " इति । छाया - लोकाकाशप्रदेशे, प्रत्येकजीवं स्थापय एकैकम् । एवं स्थाप्यमाना भवन्ति लोका असंख्येयाः ॥ १ ॥ लोकाकाशप्रदेशे निगोदजीवं स्थापय एकैकम् । एवं स्थाप्यमानाः भवन्ति लोका अनन्ताः ॥ १ ॥ इति परिमाणद्वारम् || मू० १ ॥ शब्दादिविषयासक्त्या वनस्पतिकायोपमर्दनपराः पुनः पुनर्भवसिन्धौ निपतन्तीत्याशयेनाह - ' जे गुणे. ' इत्यादि । मूलम् — जे गुणे से आवट्टे । जे आवट्टे से गुणे ॥ ०२ ॥ आचारासूत्रे छाया यो गुणः स आवर्तः । य आवर्तः स गुणः ॥ सु० २ ॥ लोकाकाश के एक-एक प्रदेश में एक-एक निगोद जीव रख दिये जायँ तो इस प्रकार रखने से अनन्त लोक हो जाएँ " । इति परिमाणद्वार ॥ ० २ ॥ (C इन्द्रियो के शब्द आदि विषयों में आसक्त होकर जो वनस्पतिकाय की हिंसा करते है वे बारम्बार भवसागर में डूबते है । इस अभिप्राय से शास्त्रकार कहते है :' जे गुणे ' इत्यादि । मूलार्थ - जो गुण है सो मावर्त्त है । जो आवर्त्त है सो गुण है ||०२|| લેાકાકાશના એક-એક પ્રદેશમાં એક-એક નિગેાદ જીવ રાખવામાં આવે તે न्या अठारे रामवाथी अनन्त सोउ यह लय " इति परिभानुद्वार. ॥ सू० १॥ ઇન્દ્રિયેાના શબ્દ આદિ વિષયામાં આસક્ત થઈને જે વનસ્પતિકાયની હિંસા કરે છે. તે વારંવાર ભવસાગરમાં ડૂખી જાય છે. એ અભિપ્રાયથી શાસ્રકાર કહે છે— ' जे गुणे.' त्याहि . भूसार्थ गुगु छे ते आवर्त्त छे. हे भावतं हे ते गुथु छे. ॥२॥
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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