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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.३ मू. ९ अकायशस्त्रम् सूक्ष्म-पर्याप्त-पृथिवीकायेभ्यः सूक्ष्मपर्याप्ता अप्काया विशेषाधिकाः ॥ मू०९॥ श्रीसुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिनमामन्त्र्य कथयति-' इहं चे.'-त्यादि । मूलम्इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदयं जीवा वियाहिया सू० ॥१०॥ छायाइह च खलु भोः ! अनगाराणामुदकं जीवा व्याख्याताः ॥ सू० १०॥ टीका'भोः' इति परस्परालापविषयकामन्त्रणे, तेन भोः हेजम्बूः ! इह-जिनशासने खलु-निश्चयेन अनगाराणां-द्रव्यभावगृहरहितानां मुनीनां पतिबोधनायेति शेषः, उदकं जीवा व्याख्याताः' इति, उदकं जीवपिण्डभूततथा सूक्ष्म पर्याप्त पृथ्वीकाय की अपेक्षा सूक्ष्म पर्याप्त अप्काय के जीव विशेष अधिक हैं ॥ सू. ९ ॥ श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी को संबोधन करके कहते है:-'इहं च' इत्यादि । मलार्थ है शिष्य ! जिन शासन में अनगारों के लिए यह व्याख्या की गई है कि-जल जीव है ॥ सू. १०॥ टीकार्थ – 'भो' शब्द संबोधन के लिए है। इस का तात्पर्य यह हुआ कि हे जम्बू ! इस जिन शासन में निश्चय से अनगारों अर्थात् द्रव्य और भाव गृह से रहित मुनियों के बोध के लिए 'जल जीव है' यह व्याख्यान किया गया है । जल, जीवों का તથા સૂક્ષમ પર્યાપ્ત પૃથ્વીકાયની અપેક્ષા સૂમ પર્યાપ્ત અષ્કાયના જીવ વિશેષ मधि छ. (सू. ८) श्री सुधा स्वामी न्यू स्वाभान, समाधन रीने ४ छ-' इहं च त्याह. મૂલાઈ–હે શિષ્ય! જિનશાસનમાં અણગારેને માટે આ વ્યાખ્યા કરવામાં भावी छे, , ४८ ७१ छे. (सू. १०) ટીકાથ– શબ્દ સંબંધન માટે છે. તેનું તાત્પર્ય એ થયું કે-હે જબૂ. આ જિનશાસનમાં નિશ્ચયથી અણગારેના અર્થાત્ દ્રવ્ય અને ભાવ ગૃહથી રહિત મુનિઓના બંધ માટે “જલ જીવ છે આ વ્યાખ્યાન કરવામાં આવ્યું છે. જલ, જીનેપિંડ છે, એ પ્રમાણે
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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