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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य० १ उ. ३ सू. ३ श्रद्धास्वरूपम् ४९७ ॥ टीका ॥ वीराः परीषहोपसर्गकषायादिरूपशत्रुविजयिनो भाववीराः संयमानुष्ठाने कीर्यवन्तः सर्वोत्कृष्टा इति यावत्, . महती चासौ वीथिः महावीथिः सम्यग्ज्ञानादिलक्षणो महामार्गः, महापुरुषसेवितत्वात्, तां महावीथिम् प्रणताः प्राप्ताः कठिनतरतपःसंयमाराधनेन प्राप्तवन्त इत्यर्थः, अयमेव मार्गों मोक्षावाप्तिकरोऽशेषसंयमिसेवितत्वात् । तीर्थङ्करादिमहापुरुषा अपि मार्गमिममनुशीलितवन्त इति विश्वसनीयतया शिष्याणां श्रद्धापूर्वकप्रवृत्तिर्यथा स्यादिति भावः । ____ यथा राजानो विपक्षपक्षदलनाद् वीरत्वेन प्रसिद्धा भवन्ति, एवमेव टीकार्थ—परीषह, उपसर्ग, कषाय आदिरूप शत्रुओं को जीतनेवाले, संयम के आचरण में पराक्रम करनेवाले सर्वोत्कृष्ट भाववीर यहाँ 'वीर' शब्द से ग्रहण किये गये है। ___ सम्यग्ज्ञान आदि मोक्ष का महामार्ग 'महावीथि' कहलाता है, क्यों कि महापुरुषोंने उस का सेवन किया है । भाववीर इस महामार्ग को प्राप्त हुए हैं । अत्यन्त कठोर तप और संयम का आराधन करना ही इस मार्ग को प्राप्त करना है । यही मार्ग मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला है, क्यों कि समस्त मुनियोंने इसी का सेवन किया है। तीर्थंकर आदि महापुरुषोंने भी इसी मार्ग का आश्रय लिया है, अत एव विश्वसनीय समझ कर शिष्यगण की भी इसी में प्रवृत्ति होनी चाहिए। 'वीर' पद से यह प्रकट किया गया है कि-जैसे राजा लोग अपने शत्रुओं का ટીકાથ–પરીષહ, ઉપસર્ગ કષાય વગેરે શત્રુઓને જીતવાવાળા, સંયમના मायरमा ५२म ४२वावाणा सहिष्ट लावधी२ मडि 'वीर' श४ वडे डर કરવામાં આવ્યા છે. सभ्यज्ञान माह मोक्षन माग ते “महावीथि" उपाय छ, ४१२ए है महाપુરૂષોએ તેનું સેવન કર્યું છે. ભાવવીર આ મહામાર્ગને પ્રાપ્ત થયા છે. અત્યન્ત કઠેર તપ અને સંયમનું આરાધન કરવું એ જ આ માર્ગને પ્રાપ્ત કરે તે છે. આ માર્ગજ મેક્ષની પ્રાપ્તિ કરાવવાવાળે છે, કારણ કે સમસ્ત મુનિઓએ એ માર્ગને સેવન કર્યું છે. તીર્થકર આદિ મહાપુરૂષોએ પણ આ માર્ગને આશ્રય લીધો છે, એટલા માટે આ માર્ગને વિશ્વાસપાત્ર સમજીને શિષ્યગણની પણ આ માર્ગમાં પ્રવૃત્તિ થવી જોઈએ. 'वीर' ५४थी ये प्रगट ४२वामा मा०यु छ है:-भ रात at पोताना शत्रुभाना प्र. मा.-६३
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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