SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य. १ उ.३ सू. २ श्रद्धास्वरूपम् ४८१ मार्यमाणप्राणिनां प्राणसंकटान्मोचनं च । आस्तिक्यम्-जिनप्रणीतागमानुसारेण · अस्ति जीवादिपदार्थसार्थः' इति मतियस्य स आस्तिकः, तस्य भावः आस्तिक्यम् । 'जिनेन्द्रप्रवचनोपदिष्टा जीवपरलोकादयः सर्वेऽतीन्द्रियाः पदार्थाः सन्ति' इत्येवंरूप आत्मपरिणामः । एभिः शमसंवेगादिभिर्भव्यानां श्रद्धाऽवबुध्यते । ।मिथ्यादृष्टेरपि श्रद्वाप्राप्तिःश्रद्धा निसर्गादधिगमाद्वा जायते । उक्तश्च " सम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-निसग्गसम्मइंसणे चैव अधिगमसंकट से छुडाना-अनुकम्पा है। 'आस्तिक्य'-"जिनप्रणीत आगम के अनुसार जीवादि पदार्थों का अस्तित्व है " । एसी “जिस की मति हो वह 'आस्तिक' है । आस्तिकपन को 'आस्तिक्य' कहते है । जिनप्रवचन में उपदिष्ट जीव, परलोक आदि सभी अतीन्द्रिय पदार्थ है " इस प्रकार का आत्म-परिणाम 'आस्तिक्य' है । इन शम संवेग आदि से भव्यों के सम्यक्त्व का पता लगता है । मिथ्यादृष्टि को श्रद्धापाप्ति जिस ? (स्वभाव) से अथवा अधिगम (किसी के द्वारा सुनने आदि) से श्रद्धा उत्पन्न होती है । कहा भी है “सम्यग्दर्शन दो प्रकार का कहा गया है-निसर्ग-सम्यग्दर्शन और अधिगम स४थी छ।31440 ते अनुकम्पा छे. आस्तिक्य-“निप्रीत मागम मनुसार पाहि पार्थानु मस्तित्व छ." मेवानी भति छ. ते मास्तिछे. मास्तिपाने 'आस्तिक्य' ४ छ. 'नि પ્રવચનમાં ઉપદિષ્ટ જીવ, પરલેક આદિ સર્વ અતીન્દ્રિય પદાર્થ છે. આ પ્રકારનાં मात्मपरिणाम त आस्तिक्य छे. આ શમ, સંવેગ, આદિથી ભવ્યેના સમ્યકત્વને પતે લાગે છે. મિથ્યાષ્ટિને શ્રદ્ધાની પ્રાપ્તિ નિસર્ગ (સ્વભાવ)થી અથવા અધિગમ (કેઈન દ્વારા સાંભળવું આદિ)થી શ્રદ્ધા उत्पन्न थाय छे. ४युं पY छ - ___सभ्यर्शन में प्राप्नु -निसर्ग-सभ्यशान भने (२) मलिगमप्र. मा.-६१
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy