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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.३ सू. २ श्रद्धास्वरूपम् ४७५ अस्या लक्षणं तु शमसंवेगनिर्वेदानुकम्पाऽऽस्तिक्यानां प्रादुर्भावः । तत्र वीतरागप्रणीतप्रवचनतत्त्वाभिनिवेशवशेनाऽनन्तानुवन्धिकपायाणामनुदयः शम इत्युच्यते । यद्वा विषयासक्तिनिवृत्तिः शमः। तथा संवेगः जिनप्रवचनानुसारेण नरकादिगतिषु ननाविधदुःखावलोकनाद्भयम्, यथा स्वकृतकर्मोदयान्नरकेषु-क्षेत्रजन्यशीतोष्णादिदशविधवेदनासहनं, परमाधार्मिकदेवकृतं, परस्परोदीरितं चेति त्रिविधं दुःखं, तथा तिर्यक्षु-ताडनतर्जन-क्षुत्पिपासा-पारवश्य-भारारोपणाद्यनेकविधं दुःखं, मनुष्येषु-दारिद्रय शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य का प्रकट हो जाना श्रद्धा का चिह्न है । वीतरागद्वारा प्ररूपित प्रवचन के तत्त्व में गाढी प्रीति होने से अनन्तानुबंधी कषायों का (क्रोध, मान, माया, लोभ, का) उदय न होना शम कहलाता है। अथवा विपयों के प्रति आसक्ति हट जाना 'शम' है । जिन भगवान् के वचन के अनुसार नरक आदि गतियो में नाना प्रकार के दुःखों को जानकर उन से भयभीत होना 'संवेग' है। जैसे-" अपने किये कर्मों के उदय से नरकों में क्षेत्रजन्य शीत-उष्ण (सर्दी-गर्मी) आदि दश प्रकार की वेदना, परमाधामी देवों द्वारा दीजाने वाली वेदना और परस्पर नारकी जीवों द्वारा होने वाली वेदना, नरक में यह तीन तरह की वेदना है। तिर्यंचों में ताडना, तर्जना, भूख, प्यास, पराधीनता, बोझा ढोना आदि अनेक प्रकार की वेदना है। मनुष्यों में दरिद्रता, શમ, સંવેગ, નિર્વેદ, અનુકંપા અને આસ્તિકય વગેરે પ્રગટ થઈ જાય તે श्रद्धानु चिह्न छ. વીતરાગદ્વારા પ્રરૂપિત પ્રવચનનાં તમાં સજ્જડ પ્રીતિ થવાથી અનન્તાનબંધી કષાયોને (કોધ, માન, માયા, લોભન) ઉદય થાય નહિ તે શમ કહેવાય छ. मथवा विषये प्रति मासहित ही तय ते शम छे. જિન ભગવાનના વચન–અનુસાર નરક આદિ ગતિઓમાં નાના પ્રકારના દુઃખોને नतेनाथ भयभीत थत 'संवेग' छ.रम-“पताना ४२सां ना यथा નરકમાં ક્ષેત્રજન્ય શીત-ઉષ્ણ શર્દી–ગરમી) આદિ દસ પ્રકારની વેદના, પરમાધામી દે દ્વારા જે થાય છે તે વેદના, અને પરસ્પર નારકી જી દ્વારા થનારી વેદના, નરકમાં આ प्रमाणे त्रय प्रशारनी वहना छ. तिर्थ यामां ताना, तना (भार-तरछ।७) भूम, तरस, પરાધીનતા, બીજા ઉપાડવા આદિ અનેક પ્રકારની વેદના છે. મનુષ્યમાં દરિદ્રતા, દુર્ભાગ્ય.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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