SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५६ आचाराङ्गमुत्रे हृदयमा भिन्द्यात्र, अप्येकः स्तनमाभिन्द्यात्र, अप्येकः स्कन्धमाभिन्द्यात्र, अप्येकः बाहुमाभिन्द्यात्२, अप्येकः हस्तमाभिन्द्यात्, अप्येकः अङ्गुलिमाभिन्द्यात् २, अप्येकः नखमाभिन्द्यात्र, अप्येकः ग्रीवामाभिन्द्यात्र, अप्येकः हनु आभिन्द्यात् २, अप्येकः ओष्ठमाभिन्द्यात्र, अप्येकः दन्तमाभिन्द्यात् २, अप्येकः जिह्वामाभिन्द्यात्२, अप्येकः ताल आभिन्द्यात्र, अप्येकः गलमाभिन्द्यात्र, अप्येकः गण्डमाभिन्द्यात्र, अप्येकः कर्णमा भिन्द्यात्र; अप्येकः नासामाभिन्द्यात्२, अप्येकः अक्षि आभिन्द्यात् २, अप्येकः माभिन्द्यात्२, अप्येकः ललाटमाभिन्द्यात्र, अप्येकः शीर्षमाभिन्द्यात् २, अप्येकः संप्रमारयेत्, अध्येकः उपद्रावयेत् ॥ सू. ५ ॥ " " को भेदे छेदे, कोई हृदय को भेदे छेदे, कोई स्तन को भेदे छेदे, कोई बाहु को भेदे छेदे, कोई हाथ को भेदे छेदे, कोई नख को भेदे छेदे, कोई गर्दन को भेदे छेदे, भेदे छेदे, कोई होठ को भेदे छेदे, कोई दांत को भेदे छेदे, कोई तालु को भेदे छेदे, कोई गले को भेदे छेदे, कोई भेदे छेदे, कोई कान को भेदे छेटे, कोई नाकको भेदे छेदे, कोई कोई भौंह को भेदे छेदे, कोई ललाट को भेदे छेदे, कोई सिरको भेदे छेदे, कोई मारकर बेहोश कर दे; या कोई मार ही डाले, इस प्रकार इन्द्रियबलहीन होने पर भी उसे वेदना का अनुभव होता ही है ।। सू. ५ ॥ भेदे छेदे, कोई कन्धे को छेदे, कोई उगली को भेदे कोई हनु ( डाढी-ठोडी) को छेदे, कोई जीभ को भेदे, गंडस्थल ( कनपटी ) को आंख को भेदे छेदे, હૃદયને ભેદે છેકે, કોઈ સ્તનને ભેદે છેદે, કાઈ કાંધને ભેદે છેજે, કોઈ બાહુને ભેદ છેકે, કાઈ हाधने लेहे-छेहे, अर्ध सांगलीने लेहे-छेडे, अर्ध नमने लेहे-छेहे, अर्ध गर्छनने लेहे छे छे, કોઈ ડાઢીને ભેદે છેઢે, કેાઈ હોઠને છેદે ભેદે, કાઈ દાંતને ભેદે છેઢે, કેાઈ જીભને ભેદે છેદે, अर्ध तालु-(ताजवा) ने लेटे-छेटे, अर्ध गजाने लेहे-छेहे, अर्ध गंडस्थल (सभा) अनपटीने लेहे-छेहे, अर्ध अनने लेहे छेडे, अर्ध नाउने लेहे छेडे, अर्ध मांगने लेहे-छेद्दे, अर्ध लंभरने लेहे-छेहे, अर्थ ससाटने लेहे छेडे, अर्ध शिरने लेटे-छेहे, કાઈ મારીને મેહેાશ કરી દે, અથવા કેાઈ મારીજ નાંખે, આ પ્રમાણે ઇન્દ્રિયખલહીન હોવા છતાં પણ તેને વેદનાને અનુભવ થાય છે. (૫)
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy