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________________ - आचारचिन्तामणि-टोका अध्य.१ उ.१ सू.५ कर्मवादिप्र० ३४७ तत्कारणत्वासिद्धेः। तद्वैचित्र्यस्य चादृष्टकौरव्यहेतुं विनाऽभावात् । शुभशरीरादीनां पुण्यकार्यत्वात् , अशुभशरीरादीनां पापकार्यत्वाच पुण्यपापभेदेन तस्य कर्मणो द्वैविध्यं सिद्धम् ।। ___पुण्यं पापं चेति द्वे कर्मणी भिन्ने स्वतन्त्ररूपे स्तः, इत्यत्रागमोऽपि प्रमाणम् । उक्तञ्च स्थानाङ्गसूत्रे-" एगे पुण्णे। एगे पावे” इति । एवमेव समवायाङ्गेऽपि। सर्वघातिप्रकृतयः(१) केवलज्ञानावरणीयम् । (२) केवलदर्शनावरणीयम् । (३) निद्रा, (४) निद्रानिद्रा, (५) प्रचला, (६) प्रचलाप्रचला, (७) स्त्यानदिः, (८-११) अनन्तानुबन्धिकषायचतुष्टयम् , (१२-१५) अप्रत्याख्यानकषायचतुष्टयम् , यह विचित्रता अदृष्ट कारण-कर्म के विना नहीं हो सकती, शुभ शरीर आदि पुण्य का कार्य है और अशुभ शरीर आदि पाप का कार्य है । अतः पुण्य और पाप के भेद से कर्म दो प्रकार का सिद्ध होता है। पुण्यकर्म और पापकर्म दोनों स्वतन्त्र-भिन्न है, इस विषय में आगम भी प्रमाण है। स्थानाङ्ग सूत्र में कहा है-'पुण्य एक है पाप एक है। इसी प्रकार समवायाङ्गसूत्र में भी कहा है। सर्वघाती प्रकृतिया(१) केवलज्ञानावरणीय, (२) केवलदर्शनावरणीय, (३) निद्रा, (४) निद्रानिद्रा, (५) प्रचला, (६) प्रचलाप्रचला, (७) त्यानद्धिं, (८-११) अनन्तानुबन्धी-क्रोध, मान, माया, लोभ, (१२-१५) अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया, लोभ, (१६-१९) प्रत्याख्यानाઆ વિચિત્રતા અદણ કારણ–કમના વિના હોઈ શકે નહિ. શુભ શરીર આદિ પુણ્યનું કાર્ય છે. અને અશુભ શરીર આદિ પાપનું કાર્ય છે. તે કારણથી પુણ્ય અને પાપના ભેદથી કર્મ બે પ્રકારનાં સિદ્ધ થાય છે. પુણ્યકર્મ અને પાપકર્મ અને સ્વતંત્ર-ભિન્ન છે. આ વિષયમાં આગમ પણ प्रभार छ, स्थानin सूत्रमा ४थु छ-" पुण्य से छे, पाय से छे." मे २१ प्रमाणे समवायाङ्ग-सूत्रमा ५ ४युं छे. सघाती प्रतिमा(१) सज्ञाना१२९॥य, (२) उपसना१२९य, (3) निद्रा, (४) निद्रनिद्रा (५) प्रत्यक्षा (6) प्रयदाप्रन्यदा, (७) सत्यानाद्ध, (८-११) अनन्तानुमधी-छ, मान, भाया,साला,(१२-१५) २५प्रध्याना१२-४।५, भान, माया,सोल, (१६-१८) प्रत्याभ्यानावर
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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