SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. १ सु. ५. कर्मवादिप्र० ३०१ दिहेतुभिर्निरन्तरमयमात्मा रागद्वेषपरिणत्या स्वस्मिन् सकलमदेशेषु कर्मवर्गणारूपं पुद्गलं समाकर्षन् क्षीरनीरन्यायेन तादात्म्यसमापन्नं करोति तदेव कर्मोच्यते । (२) कर्मणः सिद्धिः - आत्मत्वधर्मेण सर्वेषामात्मनामेकरूपत्वेऽपि देवनारकमनुष्य तिर्यगादि रूपं सुख-दुःख- सधन - निर्धन - सुरूप - कुरूप - सबला - डबल-नीरोग - सरोगादिरूपं वा यद् वैचित्र्यं तन्न निर्हेतुकं भवितुमर्हति सदा भवाभावदोषप्रसंगात् । निर्हेतुकत्वे देवनारकादिभवः शाश्वतिकः स्यात्, तथा देवनारकादिभवा रागद्वेषरूप परिणामों से अपने समस्त आत्मप्रदेशो में कर्मवर्गणा के पुद्गलों को खींचता है और क्षीर-नीर की तरह तद्रूप बना लेता है उन्हीं को कर्म कहते है । (२) कर्मकी सिद्धि सब आत्माओं में आत्मत्व समान होने पर भी कोई देव है, कोई नारक कोई मनुष्य है, कोई तिर्यञ्च, कोई सुखी है, कोई दुःखी, कोई सघन, कोई निर्धन, कोई सुरूप, कोई कुरूप, कोई सबल, कोई निर्बल, कोई रोगी है, कोई नीरोगी है, यह सब विचित्रता निष्कारण नहीं हो सकती, अगर इसका कोई कारण न होता तो या तो यह विचित्रता होती ही नहीं, अगर होती भी तो सदैव के लिए होती । निष्कारण ही देवगति या नरकगति होती तो वह नित्य होती । तथा देव नरक आदि भवका નિરંતર રાગદ્વેષરૂપ પરિણામેાથી પેાતાના સમસ્ત આત્મપ્રદેશોમાં કવણાના પુ૬ગલાને ખેંચે છે, અને ક્ષીર–નીર પ્રમાણે તપ બનાવી લે છે, તેને ક કહે છે. (२) अर्मनी सिद्धि સર્વ આત્મામાં આત્મત્વ સમાન હોવા છતાંય પણ કાઈ દેવ છે, કોઈ નારકી; अर्थ मनुष्य छे; अर्ध तिर्यय, अर्ध सुभी छे, अर्ध दुःखी छे. अर्ध धनवान् छे, अध निर्धन छे; अर्ध स्व३यवान छे, अर्ध रूप छे, अर्ध समय छे, अर्ध निर्णत छे. अर्ध રાગી છે, કોઈ નિરાગી છે. આ સર્વ વિચિત્રતા કોઈ કારણુ વના હોઈ શકે નહી. તેનું કોઈ કારણ ન હેાય તે આવી વિચિત્રતા પણ હાય નહી. અને હાય તે પછી તે હમેશાં માટે રહી શકતે, કોઈ પણ કારણ વિના દેવગતિ અથવા નરકગતિ હોય તે તે નિત્ય ઢાય, તથા દેવ અને નારક આદિ ભવને અભાવ પણ નિત્ય હત. એ પ્રમાણે
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy