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________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. १ सु. ५ आत्मसिद्धिः २२३ ( ५ ) यद्वा - देहादिकं विद्यमानभोक्तकम्, भोग्यत्वात्, यथा - अन्नवस्त्रादिकम् । अन्नवस्त्रादीनां भोक्ता मनुष्योऽस्ति । यस्य च भोक्ता नास्ति तद् भोग्यमपि न भवति, यथा खरविषाणम्, भोग्यं च शरीरादिकं, तस्माद् विद्यमानभोक्तृकम् । ( ६ ) यद्वा - अस्ति देहादिकं सस्वामिकं, संघातरूपत्वात्, मूर्तिमत्त्वात्, ऐन्द्रियत्वात्, चाक्षुपत्वात्, यथा - गृहादिकम् । गृहादीनां स्वामिनः देवदत्तादयः सन्ति । यत् पुनरस्वामिकं तत् संघातरूपं न भवति, मूर्तिमन्न भवति, ऐन्द्रियं न भवति, चाक्षुषं च न भवति, यथा- गगनकुसुमम् । देहादिकं, चास्ति संघातादिरूपम्, तस्माद् विद्यमानस्वाभिकम् । यश्च देहादीनां स्वामी स चात्मेति । (५) अथवा - देह आदि का भोक्ता कोई अवश्य है, क्यों कि वे भोग्य है, जो भोग्य होते हैं उन का भोक्ता भी होता है, जैसे – अन्न, वस्त्र आदि का । अन्न-वस्त्र आदिका भोक्ता मनुष्य है । जिसका भोक्ता नहीं होता वह भोग्य भी नहीं होता, जैसे गधे का सींग । शरीर आदि भोग्य है अतः उनका भोक्ता अवश्य है । (६) अथवा - देह आदि का कोई स्वामी है, क्यो कि वे संघातरूप है, मूर्तिमान् है, इन्द्रियो के विषय हैं और चाक्षुष है, घर आदि के समान । घर आदि के स्वामी देवदत्त आदि है | जिसका कोई स्वामी नहीं होता वह संघातरूप नहीं होता, मूर्तिमान् नहीं होता, इन्द्रिय का विषय नहीं होता, और चाक्षुष ( आंख से दीखने वाला ) भी नहीं होता, जैसे—आकाशपुष्प | देह आदि संघातरूप है, अतः उन का स्वामी अवश्य है । देह आदि का जो स्वामी है वही आत्मा है । (4) अथवा हेड माहिनो लोउता अर्थ अवश्य छे, उमड़े ते लोग्य छे, ने लोग्य होय छे, तेनेो लोउता पशु होय छे. नेम डे मान्न, वस्त्र माहिनो, अन्न-वस्त्र આદિના ભાકતા મનુષ્ય છે. જેના ભાકતા નથી તે ભેગ્ય પણ નથી, જેમ ગધેડાના શીંગ. શરીર આદિ ભાગ્ય છે, તેથી તેને ભેાકતા અવશ્ય છે. (६) अथवा हेड माहिना है। स्वाभी थे, भडे-ते सौंधात३य छे, भूर्तिभान छे, ઈન્દ્રિયોના વિષય છે. અને ચાક્ષુષ છે, ઘર આદિ પ્રમાણે. ઘર ફ્રિના સ્વામી દેવદત્ત આદિ છે. જેના કાઈ સ્વામી નથી તે સ ઘાતરૂપ પણ નથી, અને તે મૂર્તિમાન પણ હાય નહિ, ઇન્દ્રિયેાના વિષય પણ હોય નહિ અને ચાક્ષુષ ( નેત્રથી જોઈ શકાય તેવા) પણ હોય નહિ, જેમકે આકાશપુષ્પ. દેહ આદિ સ ંઘાતરૂપ છે, તેથી તેને સ્વામી અવશ્ય છે, દેહ આદિના સ્વામી છે, તે આત્મા છે.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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