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________________ आचारचिन्तामणि- टीका अवतरणा पुद्गलास्तिकाय ११९ जघन्यगुण (एकगुण) स्निग्धस्य अजघन्यगुण ( द्विगुणाद्यनन्त गुणपर्यन्त ) - स्निग्धस्य वा स्वस्वापेक्षयैकाधिकगुणरूक्षेण, पुनः स्वस्वापेक्षया द्वयधिक त्र्यधिक चतुरधिकादिगुणरूक्षेणापि बन्धो भवति । उक्तञ्च भगवता प्रज्ञापनासूत्रे - (१३) - त्रयोदशे परिणामपदे - " बंधणपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- गिद्धबंधणपरिणामे य लुक्खबंधणपरिणामे य । " समणिद्धयाए बन्धो, न होइ समलुक्खयाएवि ण होइ । माणिक्ख-तणेण बंधो उधाणं ॥१॥ छाया - बन्धन परिणामो भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः १, गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तस्तद्यथा-स्निग्धबन्धनपरिणामश्च, रूक्षवन्धन परिणामश्च । समस्निग्धतायां बन्धो न भवति, समरूक्षतायामपि न भवति । विमात्रस्निग्धरूक्षत्वेन, बन्धस्तु स्कन्धानाम् ॥ १ ॥ नहीं होता । जघन्य गुण ( एकगुण ) स्निग्ध का अथवा अजघन्य गुण ( दो से लगाकर अनन्त गुण तक ) स्निग्ध का, अपने से एक गुण अधिक रूक्ष के साथ बन्ध होता है । और अपने अपने से दो अधिक, तीन अधिक, चार अधिक आदि रूक्ष पुद्गल के साथ भी बन्ध होता है । भगवान् ने प्रज्ञापना सूत्र के १३ वें परिणाम पदमें कहा है 66 प्रश्न- 'भगवान् ! बन्ध परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है— (१) स्निग्धबन्धन परिणाम और (२) रूक्षबंधनपरिणाम । समान स्निग्धता या समान रूक्षता होने पर बन्ध नहीं होता है, किन्तु विभात्रअर्थात् अधिक का हीनके साथ, और हीनका अधिक के साथ, चाहे वे स्निग्ध हो या रूक्ष हो बन्ध हो जाता है ॥ १ ॥ નથી. જઘન્ય ગુણ (એક ગુણ) સ્નિગ્ધના અથવા અજઘન્ય, ( મેથી લઈ ને અનન્ત ગુણ સુધી) સ્નિગ્ધના પાતાનાથી એક ગુણુ અધિક રૂક્ષની સાથે બંધ થાય છે. અને પોતપોતાથી એ અધિક, ત્રણ અધિક, ચાર અધિક આદિ રૂક્ષ પુદ્ગલની સાથે પણ બંધ થાય છે, ભગવાને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ૧૩મા પરિણામ પદમાં કહેલ છે अश्न—“ भगवन्! अन्धन - परिणाम डेटा प्रहारना उद्यां छे ? उत्तर—गोतम ! मे अशरनां उडेसां छे - (१) स्निग्धमं धनपरिणाम अने (१) ३क्षम धनपरिणाम. " વિમાત્ર મર્થાત્ અધિકના ઢીનની સાથે અને હાનના આધકની સાથે જરૂરત થતા स्निग्ध होय हे रुक्ष होय, अंध यह लय छे ॥ १ ॥
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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