SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महावीर जैन विद्यालय- मंजलि श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई. इस हेडिंगसे श्री श्वे. स्था. कोन्फरन्सका मुखपत्र जैनप्रकाश अपने साप्ताहिक पत्रके ता. १ नवेम्बर १९४१ के अंक में लिखता है कि * " रीपोर्ट उपर सामान्य नजर फेरवतां ज आ संस्थानी प्रवृत्तिओनी विशालता नजरे पडी. आ संस्था कार्यक्षेत्र मुख्य ८ विभागोमां वहेंचायेलुं छे–जे नीचे मुजब छे. ( १ ) शेठ वाडीलाल साराभाई विद्यार्थिगृह आ संस्थानो मुख्य विभाग छे, जेमां आसरे ११५ विद्यार्थीओ विद्यापीठनी जुदी जुदी शाखाओनो उच्च अभ्यास करी रह्या छे. आ संस्थामा रही अनेक विद्यार्थिओए सारो विकास साध्यो छे. विद्यार्थिओनी प्रगतिमां आर्थिक संकडामणो अडचण उभी न करे ए दृष्टी संस्था तरफथी लोननी सुंदर अने संगीन व्यवस्था छे. ( २ ) आ संस्था बहारगामना विद्यार्थिओने अभ्यास माटे सगवड आपे छे. (३) दूर देशमां अभ्यास माटे जवा इच्छता विद्यार्थिओने लोनरूपे मदद आपे छे. (४) माध्यमिक शिक्षण माटे पण लोनरूपे सहाय करे छे. ए उपरांत (५) युनिवर्सिटीने योग्य साहित्य तैयार करवानुं कार्य, धार्मिक शिक्षण माटे गोठवण अने पुस्तक योजना तथा सुंदर पुस्तकालयनी जाळवणी अने वृद्धि, आवी नानी मोटी अनेकविध प्रवृत्तिओ आ संस्था तरफथी आदरवामां आवेल छे. आ रीते आ संस्था मूर्तिपूजक विद्यार्थिओना विकास अर्थे संगीन अने सुव्यवस्थित कार्य करी रही छे. आवी संस्थानी आपणा स्थानकवासी समाजमां भारे खोट छे. आपणो समाज ज्ञानवृद्धिनी आवश्यकता समजी आवी ज्ञाननदीओने वेगे वहेती बनावी मूके ए ज अभ्यर्थना. " यह एक प्रकारका निष्पक्ष सच्चा सर्टिफिकेट कहा जाता है ! अपने आप अपनी संस्थाकी ढाई करनी, गुण गाने, उससे दूसरे लोग बढाई करें, गुण गावें इतनाही नहीं बलकि वह प्रस्तुत संस्थाका अनुकरण करनेको अपने समाजको प्रेरणा करें, उत्तेजित करें, बस यही इस संस्था प्रगति और साफल्यता कही जा सकती है ! संस्थाकी सफलताका यश, श्रीसंघ बम्बई, सभासद, मदद पहुंचाने वाले दानी सद्गृहस्थ, कार्यवाहक और उपदेशकर्ता साधु मुनिराज सबको है. इसमें संदेह नहीं यदि इस संस्थाको सारा ही समाज अपना लेता तो आज यह जैन युनिवर्सिटीके रूपमें नजर आ जाती, जैसा कि संस्थाकी शुरूआत में सगत सेठ हेमचंद अमरचंद मांगरोलवालेका विचार था ! श्रीसंघ जयवंता है ! यदि अब भी श्री संघका ख्याल हो जावे तो युनिवर्सिटी बननेमें बडी बात नहीं ! बम्बई, अहमदाबाद, कलकत्ता तीनों ही शहरका प्रत्येक संघ धारे तो एक एक शहरमें एक एक युनिवर्सिटी बना सकता है ! श्रीयुत दानवीर सेठ कीकाभाई प्रेमचंद अकेले ही धारे तो
SR No.011563
Book TitleMahavira Jain Vidyalaya Rajat Jayanti Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1940
Total Pages326
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy