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________________ walpamon - - तिहास] : २७ : શ્રી શત્રુંજય __ "समराताह की स्थापित की हुइ मूर्ति का मुसलमानोंने पीछे से फिर शिर तोड दिया। तदनन्तर बहुत दिनों तक वह मूर्ति वैसे ही-खंडित रूप में दी-पूजित रही। कारण यह कि मुसलमानोंने नइ मूर्ति स्थापन न करने दी। महमूद बेगडे के बाद गुजरात और काठियावाड में मुसलमानोंने प्रजा का बडा कष्ट पहुंचाया था। मन्दिर बनवाने और मूर्ति स्थापित करने की बात तो पूर रही, तीर्थस्थलों पर यात्रियों का दर्शन करने के लिये भी जाने नहीं दिया जाता था। यदि कोइ बहुत आजीजी करता था तो उसके पास से जीभर कर रुपये लेकर यात्रा करने की रजा दी जाती थी। किसी के पास से ५ रुपये, किसी के पास से १० रुपये और किसी के पास से एक असरफी-- इस तरह जैसी आसामी और जैसा मौका देखते पैसी ही लंबी जबान और लंबा हाथ करते थे। बेचारे यात्री बुरी तरह को सेजाते थे। जिधर देखो उधर ही बडी अंधाधुधी मची हुई थी।न कोइ अर्ज करता था और न कोई सुन सकता था। कई वर्षों तक ऐसी ही नादिरशाही बनी रही और जैन प्रजा मन ही मन अपने पवित्र तीर्थ की इस दुर्दशा पर आंसु बहाती रही। सोलहवीं शताब्दि के उत्तराई में चित्तोड की वीरभूमि में कर्मासाह नामक कर्मवीर भावक का अवतार हुआ, जिसने अपने उन वीर्य से इस तीर्थाधिराज का पुनरुद्धार किया। इसी महाभाग के महान प्रयत्न से यह महातीर्थ मूच्छित दशा को त्याग कर फिर जागृतावस्था को धारण करने लगा और दिनप्रतिदिन अधिकाधिक उन्नत होने लगा। फिर जगद्गुरु श्री हीरविजयसरि के समुचित सामर्थ्य ने इसकी उन्नतिक गति में विशेष वेग दिया जिसके कारण यह भाज जगत् मे मन्दिरों का शहर (The City of Temples) कहा जा रहा है।' કમશાહ મૂલ વીરભૂમિ ચિત્તોડગઢના વાસી હતા. તેઓ મૂળ પ્રસિધ્ધ જેન • રાજા આમરાજના વંશજ હતા. તેમના પિતાનું નામ તેલાશાહ, માતાનું નામ લીલુલીલાદેવી હતું. તેમને રન, પોમ, દશરથ, ભેજ અને કમ નામક પાંચ પુત્રો હતા. તેલાશાહ તે સમયના મેવાડના પ્રસિદ્ધ મહારાણા સાંગાના મિત્ર હતા. તપગચ્છની પ્રસિધ્ધ રત્નાકર શાખાના ધર્મરત્નસૂરિ વિહાર કરતા એક સંઘની સાથે ચિતડ પધાર્યા. તે વખતે તેલાશાહે પિતાના પુત્ર કર્મશાહની સાક્ષીમાં પૂછયું કેમેં જે કાર્ય વિચાર્યું છે તે સફલ થશે કે નહિં? આચાર્ય પ્રશ્ન જોઈને કહ્યું કે ૧. ઈ. સ. ૧૯૧૬ ના ફેબ્રુઆરી તા ૧૪ ના “ટાઈમ્સ ઓફ ઈન્ડીયામાં મુંબઈના તે વખતના ગવર્નર લોર્ડ વિલીન્ડન(જે હમણાં વાયસરોય થયા હતા)ની કાઠિયાવાડની yul? 31042 us oa ( The Governor's tour in The City of Temples) मेमभा स्थित्ता१४ न प्रगट ययुं छे.
SR No.011537
Book TitleJain Tirtho no Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1949
Total Pages651
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size32 MB
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