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________________ खे दु:खे जार बाजरीना जाडा पातळा रोट ला उपर गुजरान चलायो, समाधी चडावी वायुनो रोध करो के समुदने पड़े पार नइ बेतो, पर्वजनी टोचे चहो के ग. प्त गुफामा संताइ रहो. पण काळ कोइने छोड या न थी, छोडतो नथी अने छोडवानो पण नथी. विषम कषायदावानलनीर! मोहधू लहारि समीर! गिरिसम घिर! अयोध्याधिपत!! यमदति का हाजर थइ ज्यारे पुष्ट शरीरने खाखरु हाडपिनर बनावी देशे, छवशिी चावनार बत्रीशाने पैपामांची पाधर करी नाखशे श रीर थरथर कांपतं बनावी लाकडीनो आधार लेवा फरज पाडशे, घरमांथी हाडहाड करावी 'टळतो नथी टळतो नथी, कहवेडावशे त्यारे तारा विना मारे बिजो भाश्रय कयो रह्यो. हे चारुगानी करुणाकलिपान!! तं तारा सुधा सम उपदेशथी ममतासंग मुकापी चतुरंग अममा प्रवृत्त कर! तथास्तु!!!
SR No.011532
Book TitleJain Prarthanamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherJain Dharm Pravartak Sabha
Publication Year1885
Total Pages99
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size2 MB
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