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________________ आचारांग-सूळ तथा भाषान्तर. सी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से भारदसी, जे मारदसी से णिरयंदसी जे णिरयदंसी से तिरियदसी, जे तिरियंदसी से दुक्खदेसी । (२१७) से मेहावी अभिनिवडेजा कोहंच, माणंच. मायंच, लोहंच, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गन्भं च, मरणचं,णरगं च, तिरियं च, दुक्खं च एयं पासगरस दसणं उवरयसत्थरक पलियंतकरस्स । (२१८) आयाणं णिसिद्धा सगडाभि । (२१९) किमत्थि उवाधी पासगस्स? ण विज्जति णस्थिति, बेमि।२२० ते नरकथी मुक्त थाय छे, जे नरकयी मुक्त थाय छे ते तिर्यचगतिधी मुक्त थाय छे, ने जे तिर्यंचगतिथी मुक्त थाय छे ते दुःखथी मुक्त थाय छ- [२१७] ए रीते बुद्धिशाली पुरुषे क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, तथा मोह दुर करीने गर्भ, जन्म मरण, नरकगति, अने तिर्यचगतिना दुःखो निवारदां. एम तत्वदर्शी शस्त्र त्यागी संसारना अंतकर्ता [भगवान वीरप्रमु]दर्शनछे..[२१८] माटे मुनिए कर्मोनां मूळकारणोने वंध करी प्रथम करेलां कर्मोंने खपावतां रहे. [२१९] अने ज्यारे केवीळपणुं पमाय त्यारे केलिने तो कशी उपाधि नथी ज होती. [२२०] - SETS HANDRAMANDIRAL Parent
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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